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गृहशुद्धि से भोजन शुद्धि, भोजन से चित्त शुद्धि और चैत्य शुद्धि होती है। चैत्य शुद्धि के भावशुद्धि, आत्मशुद्धि होती है। इस प्रक्रिया में हमारी लेश्या तथा आभामण्डल की मुख्य भूमिका होती है। ___जिस प्रकार टी.व्ही. में चैनल परिवर्तन करते ही ध्वनि एवं दृश्य बदल जाता है, अर्थात् टी.वी. में ऐसी विद्युत
चुम्बकीय ऊर्जा होती है जो विभिन्न चैनल की ऊर्जा को संग्रहित करती है और भिन्न भिन्न कार्यक्रमों का देखना संभव होता है। उसी प्रकार हमारे आभामण्डल की विद्युत चुम्बकीय शक्ति जिस प्रकार भाव होते हैं वैसी ऊर्जा ब्रह्मांड से खींचने लगता है अर्थात् शुभभाव होते ही सकारात्मक शक्तिवर्धक ऊर्जा तथा अशुभ भाव होते ही नकारात्मक शक्ति क्षीण करनेवाली ऊर्जा प्राप्त करते हैं। भावों की प्रतिक्रिया से हमारी अन्तःस्रावी ग्रन्थियाँ तदरूप रसायन का स्राव करती हैं जो हमारे तंत्रिका तंत्र एवं विभिन्न संस्थानों को प्रभावित एवं उत्तेजित करते हैं। यथा क्रोध का भाव आते ही नार एड्रीनेलिन रसायन का स्राव शरीर में उत्तेजना पैदा करता है जिससे आँखे लाल होना, आवाज भारी होना, स्नायुओं में खिंचाव होना आदि परिवर्तन होने लगते हैं। जब शोकपूर्ण भाव आते हैं तब सीरोटिन रसायन का स्राव निराशा अश्रुपात आदि शक्तिक्षीण करने में कारण बनता है। हर्ष एवं खुशी के भाव आते ही एण्डोर्फिन रसायन का स्राव उल्लास उत्साहरूप में शक्तिवर्धन का कारण बनता है। भक्ति एवं अनुष्ठान का भाव आते ही एड्रेनेलिन रसायन का स्राव श्रद्धा एवं समर्पण में कारण बनता है।
इस प्रकार हम देखते हैं भाव परिवर्तन के अनुसार ही हमारी ग्रन्थियों से विभिन्न रसायनों का स्राव होता है। जैनदर्शन की भाषा में जैसे भाव होते हैं उसी प्रकार का आस्रव एवं बंध होता है। मंत्र अनुष्ठाव एवं संयम साधना से आत्मशक्ति एवं शारीरकि क्षमता बढ़ने के साथ साधक का आभामण्डल भी परिष्कृत होता है, जिससे काषायिक परिणाम, हिंसादि परिणाम नहीं होते हैं। इस प्रकार साधक मंत्र साधना से अशुभ आस्रव से भरकर शुभास्रव करता है। इच्छाओं का निरोध होने से भौतिक संशाधनों का त्याग स्वमेव होने लगता है, आसक्ति कम । होते ही संसार शरीर एवं भोगों में उदासीनता आ जाती है और साधक परिग्रह, परिवार, व्यापार के व्यामोह से ! बचकर मोक्षमार्ग की ओर प्रवृत्त होकर मानव जीवन सफल करता है।
संदर्भ ग्रंथ सूची (1) प्रतिष्ठापाठ - आचार्य जयसेन (2) व्रत तिथि निर्णय- डॉ. नेमिचन्द्र ज्योतिषाचार्य (3) मंत्रानुशासन - ब्र. कौशल (4) प्रतिष्ठा रत्नाकर- पं. गुलाबचन्द्र पुष्प (5) गोम्मट प्रश्नोत्तर चिंतामणी (6) ब्र. वैभव - पं. गुलाबचन्द्र पुष्प (7) जैनागम संस्कार – मुनि आर्जव सागर (8) उमास्वामी श्रावकाचार - आचार्य उमास्वामी
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