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PROINEERINSERE
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जैन दर्शन के कुछ वैज्ञानिक तथ्य
प्रो. (डॉ.) अशोक कुमार जैन (ग्वालियर, म.प्र.) व्यवस्थित एवं विशिष्ट ज्ञान को 'विज्ञान' कहा गया है। अंग्रेजी में विज्ञान को 'Science' कहा जाता है, जो कि 'Scientia' लेटिन भाषा के शब्द से बना है, इसका अर्थ होता है ज्ञान। प्रयोग एवं परीक्षण द्वारा जो सत्यापित किया जा सके, वही विशिष्ट ज्ञान वास्तव में विज्ञान है। विज्ञान की सहायता से यथार्थ एवं अनुभवाश्रित ज्ञान प्राप्त होता है। विज्ञान निरंतर सत्य की खोज में रत रहता है। विज्ञान का निरंतर विकास होता रहता है अतः उसमें विभिन्न परिवर्तन भी होते रहते हैं एवं वह प्रगति की ओर बढ़ता रहता है। वैज्ञानिक पद्धति द्वारा प्रभावित नये सिद्धांतो का प्रतिपादन किया जाता है। विज्ञान द्वारा प्राप्त ज्ञान वस्तुनिष्ठ और निष्पक्ष होता है। वस्तुनिष्ठ होने के कारण वह सार्वजनिक भी होता है। विज्ञान के किसी वस्तु अथवा प्रवृत्ति की खोज के लिए एक निर्धारित प्रक्रिया अपनाई जाती है जिसके निम्न चार सोपान होते हैं। ...
1. न्याय संग्रहण, 2. विश्लेषण, 3. तथ्यों का वर्गीकरण, परीक्षण एवं समीक्षण, 4. निष्कर्षण
जैनधर्म में किसी भी तथ्य को अनुमान अथवा भावुकता के तल पर सिद्ध या स्वीकार नहीं किया गया है, वरन तर्क और अनुभव की कसौटियों पर जी कर संपुष्ट किया गया है। तीर्थंकर भगवंतों के ज्ञान में समस्त ब्रह्माण्ड के अवयवों एवं क्रिया कलाप इस प्रकार झलकते हैं मानो सब कुछ उनकी हथेली पर हो। भगवंतों की वाणी का अनुसरण करते हुये ही जैनाचार्यों ने ब्रह्माण्ड की विभिन्न वस्तुओं को उनके सिद्धान्तों एवं क्रिया कलापों को लेखनी बद्ध कर ग्रंथों के रूप में समाज को प्रदान कर महती कृपा की है। वर्तमान में जब हम २१वीं सदी में प्रवेश कर चुके हैं तब विज्ञान भी अपनी द्रुत गति से आगे बढ़ता जा रहा है। जहाँ भौतिक विज्ञान में नेनो कणों के चमत्कारों ने धूम मचा दी है। वहीं जीव विज्ञान में वैज्ञानिक 'जीन्स' में परिवर्तन कर नित नये प्रयोग कर रहे हैं। जहाँ एक छोटी सी 'चिप' हजारों पृष्ठों की सूचनाओं को एकत्रित एवं सम्प्रेषण करने की क्षमता रखती है वहीं वैज्ञानिकों ने परमाणु को भी उधेड़ कर इसके अवयवों की खोज कर ली है।
प्रश्न उठता है कि विज्ञान नित नये जो आविष्कार कर रहा है वह धर्म की कसौटी पर ।