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विपाकक
प्रचार की योजना बनाई। अंकलेश्वर उन महिमान्वित पुष्पदन्त और भूतबलि आचार्यो की चरण-रज से पवित्र हुआ था। यह स्थान काष्ठासंघ और मूलसंघ के भट्टारकों का प्रभाव क्षेत्र था। यहाँ के मंदिरों में उनकी गद्दियाँ बनी हुई हैं।
९. सजोद - अंकलेश्वर से पश्चिम की ओर गुजरात प्रान्त के भड़ौच जिले में स्थित है। यह अतिशय क्षेत्र है। यहाँ एक प्राचीन जैन मंदिर है। मंदिर के भोंयरे में शीतलनाथ की मूर्ति है। यह प्रतिमा सातिशय है और काफी प्राचीन है।
१०. अमीझरो पार्श्वनाथ - "श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र अमीझरो पार्श्वनाथ " गुजरात प्रान्त के बड़ाली ग्राम में है। ग्राम में एक प्राचीन मंदिर है जिसमें मूलनायक "अमीझरो पार्श्वनाथ" की प्रतिमा है। भट्टारक ज्ञानसागर ने अपनी 'सर्वतीर्थ वन्दना' नामक रचना में बताया है कि पूजा के अनन्तर पार्श्वनाथ की मूर्ति में अमृत झरता है, इसलिए उसका नाम अमीझरो जिनालय है।
ईडर के आसपास कई अतिशय क्षेत्र अथवा प्राचीन मंदिर हैं जो उपेक्षित दशा में पड़े है। ईडर जिले में मुडैठी के पास और ईडर से तीन मील दूर पर्वत में एक प्राचीन शिखरबन्द जिनालय है।
जिले में टाका और बोइडा के बची जंगल के अन्दर नदी किनारे आदीश्वर भगवान का शिखरबन्द बड़ा प्राचीन मंदिर है।
प्राकृतिक
यहां उत्तुंग शिखरावलियों से युक्त ऐसा एक बावन जिनालय है देवाधिदेव श्री १००८ चंद्रप्रभ स्वामीजी का । यहां के मूलनायक भगवान श्री चंद्रप्रभ स्वामी अतिशययुक्त चमत्कारी एवं तेजोमय है। मूलनायक के अतिरिक्त ११० नयनाभिराम और चतुर्थकालीन जैसी भव्य प्रतिमाएं यहां का मुख्य आकर्षण हैं। जिनालय के प्रांगण में ! प्रचुर कला वैभव से युक्त एक तीन मंजिल भव्यातिभव्य कीर्ति स्तंभ भी है।
११. भीलोड़ा- गुजरात राज्य के साबरकांठा जिले में ईडर से ३० किमी. दूर अरावली पहाड़ों नाभिराम शोभा से युक्त हाथमती नदी के तट पर बसा है।
१२. अहमदाबाद- अहमदाबाद जैनियों का मुख्य स्थान है। इसका प्राचीन नाम 'करणावती' थी। ग्यारहवीं शताब्दी में इसे राजा करण ने स्थापित किया था। अहमदशाह ने सन् १४१२ में इसका नाम अहमदाबाद रखा। यहाँ सैकड़ों जैन मंदिर हैं। जिसमें ६५ दि. जैन मंदिर है।
अहमदाबाद इतना बड़ा नगर है कि सन् १६३८ में एक विदेशी यात्री मैन्डेस्लाक ने देखा और लिखा“एशिया की ऐसी कोई जाति व ऐसी कोई वस्तु नहीं जो इस नगर में दिखाई न दे। मुसलमानों ने मस्जिदों में जैन मंदिरों का बहुत सा मसाला लगाया है। अहमदशाह की मस्जिद में भीतर जैन गुम्बज है और बहुत सा मसाला इसी जैन मंदिर का है । हैबतखां की मस्जिद के भीतर भी जैन गुम्बज है । सय्यद आलम की मस्जिद में जैनियों के मंदिर
खम्भे हैं। जिस समय उदयपुर के खुम्बो राना ने सादरा में जैन मंदिर बनवाया था उसी समय अहमदशाह ने ! मस्जिद बनवाई। जैसे उस जैन मंदिर में २४० खम्भे हैं वैसे ही इस मस्जिद में हैं। तात्पर्य यह है कि इस समय जैन ! शिल्प कला खूब लोकप्रिय हुई थी ।"
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जब से मुसलमानों ने गुजरात पर अधिकार किया उन्होंने इसको उखाड़ने की शक्ति भर चेष्टा की, किन्तु यह बराबर जीता रहा तथा इसके मानने वाले अब भी बहुत हैं। जैनियों की चित्रकला व शिल्प ने अपनी सुन्दरता के कारण मुसलमानों पर असर डाला जिसे उन्होंने स्वीकार किया। अहमदाबाद में बहुत सी मुसलमानी इमारतों में 1 जैन चित्रकला झलकती है।