Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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! आनुवंशिकी के वे सारे गुण मौजूद होते हैं जो उसके डोनर पैरेन्ट (Donor Parent) नर या मादा के होते हैं।
क्लोनिंग की प्रक्रिया वस्तुतः प्रजनन की एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें नर या मादा किसी एक की कोशिका के
केन्द्र से ही जीव पैदा होता है। इस प्रकार पैदा हुए जीव या जीवों का समूह ही 'क्लोन' कहलाता है तथा वह । प्रक्रिया जिससे 'क्लोन' तैयार होते हैं, 'क्लोनिंग' कहलाती है।
पशुओं में क्लोनिंग पशुओं में क्लोनिंग वनस्पतियों (पौधों) में क्लोनिंग के मुकाबले एक क्लिष्ट प्रक्रिया है क्योंकि पौधों की कोशिकाओं का ढांचा अपेक्षाकृत सरल होता है। कई नवजात पौधों की कोशिकाओं में यह गुण होता है कि वे द्विगुणन द्वारा अपनी वंशवृद्धि कर सकती हैं। इस विशेष गुण के कारण ही कई वनस्पतियों में क्लोनिंग की प्रक्रिया बहुत प्राचीन है। कलम द्वारा पौधे लगाना इसी प्रक्रिया के अन्तर्गत आता है। कई एक कोशीय सूक्ष्म जीव यही प्रक्रिया अपनाते हैं। ___ पशुओं के क्लोन तैयार करने की कोशिशें भी काफी समय से होती रही हैं। वैज्ञानिकों ने पचास के दशक में मेढ़कों के क्लोन बनाने के कई प्रयोग किये। सन् 1952 में इस क्षेत्र में आंशिक सफलता भी प्राप्त कर ली। लेकिन पूरी तरह से साठ के दशक में ही सफल हो पाये तथा मेढ़क के तीस क्लोन तैयार कर लिये।
स्तनधारी पशुओं में क्लोनगिं और अधिक कठिन प्रक्रिया है। इसका मुख्य कारण यह है कि इन पशुओं के अण्डाणु (Egg Cell) बहुत छोटे तथा अधिक भंगुर होते हैं। इस प्रक्रिया में केन्द्रक के प्रत्यारोपण के लिए एक खास सूक्ष्म शल्य चिकित्सा (Micro-Surgery) करनी पड़ती है। सत्तर के दशक में खरगोशों तथा चूहों के क्लोन तैयार करने के कई प्रयोग किये गये तथा अन्ततः वैज्ञनिक सफल भी रहे। नब्बे के दशक में भेड़ के क्लोन तैयार करने के प्रयोग किये गये। लेकिन सबसे अधिक तहलका तब मचा जब एडिनबर्ग (स्कॉटलैण्ड) में स्थित 'रोसलिन इन्स्टीट्यूट' में वैज्ञानिक डॉ. इआन विलमट ने फरवरी सन् 1996 में 'डॉली' के रूप में एक पूर्ण स्वस्थ 'भेड़ का क्लोन' पैदा कर दिया। इसे एक महान उपलब्धि के रूप में लिया गया क्योंकि इससे मानव क्लोन तैयार करने का रास्ता और अधिक स्पष्ट हो गया।
क्लोन बनाने की तकनीक
क्लोनिंग की चर्चा आगे बढ़ाने से पहले हमें कोशिकाओं तथा स्तनधारियों में सामान्य प्रजनन की प्रक्रिया को थोड़ा समझना होगा। प्रत्येक पशु एवं वनस्पति में अनेक कोशिकायें पायी जाती हैं। मनुष्य के शरीर में इन . कोशिकाओं की कुल संख्या सौ खरब (1013) तक हो सकती है। प्रत्येक कोशिका अपने आप में एक अलग अस्तित्व वाला पूर्ण जीव होता है। यह वैसे ही एक अलग जीव है जैसे कि आप और हम। कोशिका के केन्द्र में एक नाभिक होता है जिसे केन्द्रक भी कहते हैं। केन्द्रक के अन्दर उस जीव के गुणसूत्र (क्रोमोसोम्स) होते हैं। मनुष्य की कोशिका के गुणसूत्रों की संख्या 46 होती है। इन गुणसूत्रों में ही अनुवांशिकी के सभी गुण मौजूद होते हैं। क्रोमोसोम्स (गुणसूत्रों) की रचना डी.एन.ए. तथा आर.एन.ए. नामक रसायनों से निर्मित होती हैं। इन गुणसूत्रों पर ही जीन्स स्थित होते हैं। कोशिका के केन्द्रक के चारों ओर एक जीव द्रव होता है जिसे प्रोटोप्लाज्म कहते हैं।
नर के शुक्राणु तथा मादा के अण्डाणु भी परिपक्व (Matured) कोशिकायें होती हैं यानी कि इनमें द्विगुणन द्वारा वृद्धि नहीं होती है। स्तनधारी पशुओं में लैंगिक प्रजनन होता है। इस प्रक्रिया में शुक्राणु, अण्डाणु को फलित या निषेचित कर देता है तथा एक नयी कोशिका का निर्माण होता है। इस नयी कोशिका में पुनः द्विगुणन करने