Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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शEOBHA BIHAR
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। स्मृतियों के वातायन से पापा ने पैसा कम कमाया, पर प्रतिष्ठा एवं सम्मान उन्हें इतना मिला कि जो दौलत से ज्यादा कीमती है।
अन्याय सहन करना उनके स्वभाव में नहीं है। न कभी अन्याय के सामने झुके हैं, चाहे फिर सामने समाज हो या परिवार, रिस्तेदार हो। मैं आज जिस जगह हूँ पापा की प्रेरणा की वजह से हूँ। मेरी परवरिश उनके सिद्धांतो के अनुसार ही हुई है। उनका गुस्सा उनकी जिद पहले तो हमें गलत ही लगता है पर बाद में सोचने पर लगता है कि वे अपनी जगह सही हैं। ___ आज का उनका सम्मान सही अर्थ में उनके सिद्धांतों का, उनकी न्याय प्रियता का है। ये सम्मान सिर्फ उनका नहीं हमारे परिवार एवं समग्र जैन समाज का है। जैन एवं जैन धर्म के लिए कुछ करने की तमन्ना आज उन्हें यहां तक ले आई है। . ___ अंत में तीर्थंकरों की अनुकम्पा, मुनि भगवंतो एवं आचार्यों के आशीर्वाद, बुजुर्गों की कृपा दृष्टि एवं मित्रों की शुभेच्छा सदा उनके साथ रहे।
डॉ. राकेश जैन (पुत्र)
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* My Father a Devoted Person God has given him in abundance. God has given him good health, good wife, good children, hard working and never tiring mind. His mind is always fil of various ideas for society. He has pain for everybody except his own body. He has many dreams for family and society which must be fullfilled. By Brain he is very strong, full of knowledge but anger also. He sets his own goals in life and achieves it. His some ideas are rigid also. He earned knowledge, money, reputation, medals and faith of family and society many truths and ideas are bitter so many time he has uttered harsh truths.
He has got spring of energy, unmeasurable joy and probobly some hidden sorrow in his heart. He has opened all his mind to society, his body to time his heart to family and lovers. Pain for poors and needy is disolved in his heart - which can be seen on his face. May his heart remain full of joy, full of godbliss, full of fragrance of love to all of us.
___Dr.Ashesh Jain (Younger Son)
- मेरे पापा - जिन्हें मुझसे विशेष वात्सल्य है 'बच्चों की हर खुशी पर अपनी कुशियां कुर्बान करते हैं मां-बाप' इस बात को जब मैं खुद मां बनी तब मैंने जाना।
मेरे पापाने 18 साल की उम्र से ही अपने जीवन में संघर्ष किया। अपने भाइयों की,- बहनों की और साथ में बीवी-बच्चों की परवरिश करना, उसी दौरान पढ़ना-पढ़ाना और कमाना इन सारे कार्यों को उन्होंने बखूबी संभाला। हाँ वे थोड़े से क्रोधी जरूर हैं, लेकिन दिल के साफ हैं। आज मेरे दोनों बच्चे जब अपने पापा से प्यार करते ! हैं तब मुझे भी पापा से प्यार करने की इच्छा जरूर होती है, तब मैं पापा से फोन पर बात कर लिया करती हूँ। __ मुझे अपने पापा पर बहुत गर्व है। उन्हें हर कदम पर सफलता प्राप्त हुई लेकिन मैं इतना जरूर कहूंगी कि पापा की हर सफलता के पीछे मेरी मम्मी का साथ हमेशा रहा है।
पापा की बेटी अर्चना (दुर्ग) ।