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__ पुरुषार्थ की प्रभा से प्रकाशित डॉ. शेखरचन्द्र अभाव से प्रारंभ जीवन पुरुषार्थी को प्रारब्ध से लड़ने और आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है, ज्ञान की ललक ज्ञानार्जन के अवसर न मिलने पर भी पुरुषार्थ को विद्वान बना देती है। यह मेरे अनुभूत तथ्य हैं और डॉ. शेखरचन्द्र इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। __पंडित शेखरचन्द्रजी ने अपने चिन्तन मनन के बल पर लेखन और प्रवचन में कैसी दक्षता प्राप्त की है तथा अपने अध्यापकीय गुण के माध्यम से विद्वत्ता को प्रज्वलित करते हुए देश विदेश में कैसा सम्मान प्राप्त किया है, इसे मैंने निकट से देखा जाना है। यह भी अनुभव किया है कि उनके ये गुण ईर्षा के कारण भी बने हैं जो प्रसिद्धि के परिचायक हैं। ___ सन 1988 में लीस्टर (इंग्लेण्ड) में सम्पन्न पंचकल्याणक प्रतिष्ठा में सम्मिलित होने के साथ ही मुझे एक माह की विदेश यात्रा का अवसर मिला था। उसी यात्रा में शेखरचन्द्रजी से मेरा प्रत्यक्ष परिचय हुआ। कुछ समय बाद एक कार्यक्रम में उनका सतना पधारना हुआ तो अपनी कुटिया में उनके स्वागत का अवसर भी मिला। ___अहमदाबाद के टाउन हाल में वहां की श्वेताम्बर जैन समाज द्वारा पर्युषण पर्व में एक सप्ताह प्रातःकालीन प्रवचन सभा का आयोजन होता है। जिसमें प्रतिदिन दो विद्वानों के प्रवचन होते हैं। डॉ. शेखरचन्द्र के माध्यम से मुझे सन 1972 और सन 1977 में वहां से आमंत्रण मिले, मेरा एक एक प्रवचन हुआ। वहां मेरे मित्र भरतभाई शाह ने बताया और मैंने स्वयंभी देखा कि वहां श्वेताम्बर जैन समाज में शेखरचन्द्रजी की अच्छी प्रतिष्ठा है। जो उनके समन्वयात्मक दृष्टिकोण का परिचायक है। __विद्वत संगोष्ठियों में प्रायः पंडित शेखरचन्द्रजी से मिलना होता रहता है। अव्यवस्थाओं और अनियमितिताओं पर उनकी स्पष्ट और तीखी प्रतिक्रियायें उनकी उपस्थिति का सहज ही अहसास करा देती है। इस मंगल अवसर पर मैं उनके यशस्वी दीर्घ जीवन की कामना एवं उन्हें हार्दिक शुभकामनायें अर्पित करता हूँ।
निर्मल जैन (सतना)
विद्वत समाज के गौरव ही नहीं शिरमौर भी हैं
जैन जगत के नक्षत्र पर एक नाम गौरव के साथ लिया जाता हैं वह नाम है डॉ. शेखरचन्द्र जैन। आपने दि. जैन समाज की अ.भा.दि. जैन संस्थाओं में आमूल चूल परिवर्तन किये, समाज को नई दिशा व नई राह दी। कुरीतियों, कुमार्गो का दृढ़तापूर्वक विरोध किया और कर रहे हैं। ____ आप जैन समाज के प्रखर प्रवक्ता, वाणी के धनी, ओजस्विता लिये हुए है। समाज की दिशा-दशा बदलने में सक्षम/स्वाभिमानी निर्लोभी- अनेक सुगुणो से विभूषित। ___ आप अ.भा.क्षेत्रीय स्थानीय शताधिक संस्थाओं के पदाधिकारी, प्रबन्ध समिति-कार्य समिति से सम्बन्धित हैं। देश की कोई संस्था नहीं है जो सभी आपकी सहभागिता न हों।
आप वर्तमान विद्वानों में अग्रणी और शिरमौर हैं। व्यक्तित्व के धनी-भारतीय जैन समाज में आप एक विलक्षण प्रतिभा एवं व्यक्तित्व के धनी हैं।
ऐसे विद्वान का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशन होना तथा सम्मान होना समाज के गौरव पूर्ण है। हम ऐसे महान । विद्वान के प्रति शत्-शत् वन्दन-नमन करते हुये दीर्घायु की कामना करते हैं।
पं. सरमनलाल जैन 'दिवाकर' शास्त्रि (सरधना) ।