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नामांसा
2 111 आरती-शांतिपाठ क्यों और कब करना चाहिये? की चर्चा के साथ-साथ सामायिक, स्वाध्याय, प्रतिक्रमण, व्रतोपासना, उपवास, एकासन, आहार-विहार, रात्रिभोजन निषेध, सप्तव्यसनों का त्याग, अष्टमूलगुणों को धारण करना एवं श्रावक के षट्कर्मों की चर्चा की गई है। यह पुस्तक इतनी सरल भाषा में है कि छोटी कक्षा का विद्यार्थी भी बड़ी सरलता से समझ सकता है। वास्तव में विद्यार्थियों, युवकों में जैनधर्म के प्रति समझ और श्रद्धा उत्पन्न हो यही. कृति का उद्देश्य है।
जैन दर्शन में कर्मवाद |
'जैन दर्शन में कर्मवाद' डॉ. शेखरचन्द्र जैन की भ. महावीर के २६००वें जन्मोत्सव वर्ष सन् 2002 में प्रकाशित कृति है। जिसका प्रकाशन श्री कुन्थुसागर ग्राफिक्स सेन्टर से किया गया और जिसके आर्थिक सहयोगी हैं श्री रमेशचंदजी कोटड़िया, मुंबई। कृति में पद्मश्री डॉ. कुमारपाल देसाई ने अभिवादन के माध्यम से कृति की सरलता, सैद्धांतिक पक्ष की सुंदर विवेचना की है। | जैन दर्शन में अनेक सिद्धांतो में कर्मवाद सबसे महत्त्वपूर्ण तत्त्वचिंतन का विषय है। यह कर्मवाद जैनधर्म की विशेष देन है। जैसाकि हम जानते हैं अवतारवाद, संसारकी रचना के
"साथ जैनदर्शन का कर्मवाद भी उसे अन्य धर्मों से अलग और विशिष्ट पहचान देता है। मूलतः श्री रमेशचंदजी कोटड़ियाजी की बड़ी इच्छा थी कि कर्मवाद पर ऐसी पुस्तक लिखी जाये जो विषय की गहराईयों के साथ-साथ इतनी सरल हो कि साधारण पाठक भी उससे ज्ञान प्राप्त कर सके। लाखों पृष्ठों में वर्णित यह विषय मात्र 67 पेजों में समाहित किया गया है।
लेखकने प्रारंभ में कर्म संबंधी विविध मान्यताओं को प्रस्तुत किया है, साथ ही कर्म शब्द के अर्थ को समझाते हुए कर्म के आस्रव का वर्णन किया है। ये आश्रित कर्म ही बंध के कारण बनते हैं और आत्मा को ८४ लाख योनियों में भटकाते हैं। लेखकने कर्म के जो आठ भेद हैं उनकी शास्त्रीय व्याख्या की है। इन आठ कर्मों की सैद्धांतिक व्याख्या पूर्णरूपेण आगम संमत है, भाषा सरल अनेक उदाहरणों से युक्त होने से लोक पठनीय है।
कृति की सबसे बड़ी विशिष्टता यह है कि इसमें प्रत्येक कर्म से संबंधित एक-एक कथा लेखकने प्रस्तुत की है। कथा के माध्यम से जिस-तिस कर्म को समझाया गया है। कुछ कथायें पौराणिक हैं तो कुछ लेखकने स्वयं रची हैं।
सचमुच इस कृति को लोगों ने और सविशेष किशोरों और युवाओं ने कथाओं के कारण बड़े ही मनोभाव से पढ़ा और अध्ययन किया है। कृति की सफलता इसी में है कि चंद महिनों में ही वह अप्राप्य हो गई।
ऐसी कृतियाँ ही वास्तव में जैनधर्म और दर्शन को प्रचारित करने में सहायक होती हैं। समीक्षक : डॉ. कपूरचन्द खतौली
जैन दर्शन : बहु आयाम 'जैन दर्शन : बहु आयाम' डॉ. शेखरचन्द्र जैन के नवीनतम निबंधों का संग्रह है। rekhar : eg rem जिसका प्रकाशन भ.बाहुबली मस्तकाभिषेक वर्ष 2006 में 'समन्वय प्रकाशन' द्वारा किया गया। जिसके आर्थिक सहयोग दाता श्री एम.आर. मिण्डा चेरीटेबल ट्रस्ट, उदयपुर हैं। पुस्तक की भूमिका कुंदकुंद ज्ञानपीठ इन्दौर के मानद् सचिव श्री डॉ. अनुपम जैन ने लिखी है और पूरी कृति की उन्होंने उसमें समीक्षा की है, जिसमें उन्होंने कहा है ‘डॉ. जैन के अंदर निहित प्रोफेसर की शोधात्मक प्रवृत्ति इन निबंधों में व्यक्त हुई।
प्रस्तुत निबंध संग्रह पूर्व के निबंध संग्रहों की भाँति विविध प्रसंगों पर प्रस्तुत निबंधों