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जैसा जाना
105] જૈન સાહેબને વ્યાપક સંબંધો તો ખરા જ. પરંતુ વિશેષતા એકે આ સંબંધોનો તેઓ માનવીય અને સામાજિક સેવાના કાર્યોમાં ઉપયોગ કરે. જૈન સાહેબનાં પુત્ર અશેષ એમ.ડી. ડોક્ટર છે. ઓઢવમાં પ્રેક્ટીસ કરે છે. તે પણ સેવાભાવી છે. અમારી કોલેજનાં કર્મચારી રાહજુરની તેઓએ નિઃશુલ્ક સારવાર કરી આપી. દવાના ખર્ચની વ્યવસ્થા મેં કરી આપી. તેઓએ ઓઢવમાં આશાપુરા જૈન હોસ્પીટલ દ્વારા ગરીબ ભાઈ-બહેનોને સેવા કરીને માનવતાનું ઉદાહરણ પૂરું પાડ્યું છે. બહુઆયામી વ્યક્તિત્વ ધરાવતા જૈન સાહેબ મારા મિત્ર છે તેનો મને આનંદ છે એટલું જ નહિ, અમારા બંનેની નિવૃત્તિ પછી પણ આ મૈત્રી રહી છે. આ અભિનંદન ગ્રંથ પ્રકાશન પ્રસંગે હું તેમની સિદ્ધિઓ માટે તેમને અભિનંદન પાઠવું છું.
प्रि. माई पटेर (AHELLE)
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* एक निर्भीक स्पष्ट प्रवक्ता ___ मैंने पढ़ा है कि सौ व्यक्तियों में कोई एक शूर होता है, हजारों में एक पण्डित होता है पर दस हजारों में कोई एक वक्ता होता है- इस दृष्टि से वे एक सफल वक्ता-संचालक हैं। चाहे हस्तिनापुर की गोष्टि हो, सूरत का विद्वत् सम्मेलन हो या श्रवणबेलगोला के महामस्तकाभिषेक के अवसर पर संपन्न अ.भा. विद्वत् गोष्ठी सम्मेलन हो-वे फटाक से जो भी मन में आये वह बोल ही देते हैं। कभी हम सत्य कहने में हिचक भी जायें, पर वे चाहे साधू हो, भट्टारक हो सबको अपनी प्रतिक्रिया देते हैं, और विद्वानो में अपनी स्पष्ट हृदयगत गरिमा के लिये जाने जाते हैं। ___ डॉ. शेखरचंद्र जैन एक कुशल दूरदर्शी, समर्थ, सभा संयोजक संचालक हैं। वे भलीभाँति जानते हैं कि इस सभा को गरिमा और विषय की व्यापकता कैसी हो, अतः जहाँ भी संगोष्ठि या परिचर्चा होती है- डॉ. शेखरचंदजी का नाम अग्रगण्य होता है। __डॉ. शेखरचंद्र जैन अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त विद्वान हैं। जिन्होंने जैन धर्म एवं दर्शन के गूढ़ रहस्यों को उद्घाटित एवं प्रकाशित कर विदेशों में आमंत्रित होकर अपने बहुआयामी व्यक्तित्व को निखारा है। इसका एक प्रबल कारण है कि वे बहुभाषी हैं। उनके हिन्दी, गुजराती कथा साहित्यने उन्हें साहित्य सृजन के क्षेत्र में एक श्रेष्ठ साहित्यिक के रूप प्रस्थापित किया है।
· कुशल संपादक डॉ. शेखरचंदजी जैन हमारी जाति के हैं, अर्थात वे तीर्थंकर वाणी के कुशल संपादक हैं। वे सदैव तटस्त लिखते हैं। चाहे श्रावक या मुनियों का शिथिलाचार हो या तीर्थ संबंधी कोई विवाद हो वे अपनी प्रतिक्रिया प्रभावपूर्ण शब्दो में देते हैं। वे अपनी प्रबुद्ध सेवाओं के कारण भ. ऋषभदेव विद्वत् जैन महासंघ के अध्यक्ष एवं शास्त्रि परिषद की कार्यकारिणी के जागरूक सदस्य रहे हैं। उन्हें विद्वत्ता और संपादन के कारण । अनेक पुरस्कार मिले हैं जिनमें ग.आ.ज्ञानमती पुरस्कार सर्वोपरि है। पुरस्कार की एक लाख राशि उन्होंने । असहाय बालकों की शिक्षा हेतु दान में दी है। मानों वे कह रहे हैं “हे स्वामिन्! ये तुम्हारा है तुम्हे ही अर्पित है।" ऐसा निर्लोप प्रवृत्ति का व्यक्ति विद्वानों में देखने को नहीं मिलता। मैं व्यक्तिगत और दिव्यध्वनि परिवार की ओर से उनकी दीर्घायु, आरोग्य की कामना करता हूँ।
डॉ. कुलभूषण लोखंडे संपादक- 'दिव्यध्वनि' सोलापुर