Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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किया तो मेरी स्वतंत्र कहानियों का संग्रह 'टूटते संकल्प' कानपुर से प्रकाशित हुआ । इस कहानी संग्रह की | भूमिका प्रसिद्ध कथा लेखक डॉ. श्री रामदरशजी मिश्र ने लिखने की कृपा की थी । अन्य कहानियाँ भी लिखीं पर प्रकाशन के अभाव में अभी फाईल में ही प्रतिक्षारत हैं।
जैन साहित्य
हिन्दी साहित्य के लेखन से अधिक मुझे जैन साहित्य के लेखन में अधिक आनंद और आत्मसंतोष मिला। इसका कारण यह भी था कि हिन्दी जगत की राजनीति, प्रकाशकों की दुरंगी नीति, कमीशन के प्रश्न, मूल्यों की रकझक आदि थे। पर जैन साहित्य में ऐसा कम ही था। दूसरे यह मेरी रूचि का क्षेत्र भी था।
मैं छोटे-छोटे लेख जैन पत्र-पत्रिकाओ में लिखता रहता था । और १९८२ से इसे गति मिली । १९८१ में रीढ़ की हड्डी के ऑपरेशन के कारण जो तीन महिने का आराम का समय मिला (जबरदस्ती का आराम) उसमें प्रथम पुस्तक गुजराती में लिखी गई 'जैन आराधना की वैज्ञानिकता' पुनश्च इसीका हिन्दी अनुवाद 'जैन दर्शन सिद्धांत और आराधना' के नाम से प्रकाशित हुआ। चूँकि मेरे आलेख, निबंध, ठीक-ठीक प्रमाण में हो चुके थे। अतः उनका संकलन ‘मुक्ति का आनंद' (हिन्दी - गुजराती), मृत्यु महोत्सव (हिन्दी) के नाम से प्रकाशित हुए। तदुपरांत पू. उपाध्याय ज्ञान सागरजी की प्रेरणा से 'पद्मपुराण' - 'पउमचरिउं' के आधार पर भगवान रामचंद्रजी को नायक बनाकर 'मृत्युंजय केवली' राम उपन्यास लिखा जो शास्त्रि परिषद ने छापा । उन्हीं की प्रेरणा से महान जैन दस सतियों पर कहानी संग्रह 'ज्योर्तिधरा' का लेखन कार्य किया। जो बुढ़ाना से प्रकाशित हुआ । इसी श्रृंखला में 'परीषहजयी' नौ मुनियों के उपसर्ग की कथायें नवीन शैली में कहानी के रूप में प्रकाशित हुई।
मैं १९८० से पर्युषण पर्व में णमोकार मंत्र का ध्यान शिविर आयोजन करता हूँ। पतंजलि, योगशास्त्र, आ. तुलसी एवं आ. महाप्रज्ञ के ग्रंथों का अध्ययन किया और सैंकड़ो पृष्ठों का तत्व सिर्फ ६०-७० पृष्ठों में प्रस्तुत | किया। पुस्तक का नाम 'तन साधो मन बांधो' है। पुस्तक में ध्यान की समग्र क्रिया को चित्रों के साथ प्रस्तुत किया है। इस पुस्तक में गुरुदेव श्री चित्रभानुजी एवं पू. महाप्रज्ञजी के विचार आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त हुए। पुस्तक इतनी लोकप्रिय हुई की हिन्दी के उपरांत दो संस्करण गुजराती में हुए जिसमें एक संस्करण जैन सेन्टर बोस्टन ने प्रकाशित कराया था।
इसी प्रकार श्वेताम्बर पर्युषण में श्री कल्पसूत्र का प्रवचन करता रहा हूँ। जिसमें ११ गणधरों की कथा बड़ी ही रोचक और रोमांचक है। उससे प्रेरित होकर मैंने बोस्टन के एक मित्र के आग्रह पर गुजराती और अंग्रेजी में 'गणधरवाद' के नाम से पुस्तक लिखी ।
मैं प्रारंभ से ही आचार्य विद्यासागरजी के काव्य साहित्य का पाठक रहा हूँ। जब उनका महाकाव्य मूकमाटी प्रकाशित हुआ तब प्रथम १० - १२ समीक्षाओं में मेरी एक समीक्षा थी। जो लगभग ४० पृष्ठो की थी। उस समीक्षा से ही मेरा पू. श्री के साथ सीधा संबंध बढ़ा। मूक माटी पर प्रथम बार बीना बारहा में आचार्यश्री के समक्ष समीक्षा करने का मौका मिला। बाद में उनके पाँच काव्यसंग्रहों का पठन-मनन-चिंतन और विवेचन करते हुए 'आ. कवि विद्यासागरजी का काव्य वैभव' ग्रंथ प्रकाशित किया। इसी श्रृंखला में बच्चों को ध्यान में रखकर आठ कर्मों की आठ कहानियाँ लिखकर कर्म के सिद्धांतों की सरल व्याख्या करते हुए जैनदर्शन में कर्मवाद पुस्तक का लेखन किया। जिसे अनपेक्षित लोकप्रियता प्राप्त हुई । अन्य निबंधों का संग्रह उदयपुर निवासी श्री महावीर मिंडा चेरीटेबल ट्रस्ट की ओर से 'जैन धर्म विविध आयाम' के नाम से प्रकाशित हुई ।
इस स्वतंत्र लेखन के उपरांत संपादन कार्य किया। इसमें पू. स्व. मूलचंदजी कापड़िया अभिनंदन ग्रंथ जिसका