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। लालच देकर-धन इकट्ठा करके उसीमें लीन हो गये। मुझे तो लगता है कि बिचारे सामायिक कब करते होंगे? } क्योंकि उनका मन तो योजनाओ में ही उलझा रहता है। इतना ही नहीं कईयों ने तो स्वयं धन इकट्ठा करके अपने
परिवार को सुखी भी किया है। और कईयों ने शिथिलाचार की अंतिम श्रेणी पर बैठकर चारित्रिक स्खलन द्वारा पूरे धर्म को ही बदनाम कर दिया है। लेकिन हमारा श्रावक इस सब शिथिलाचार को देखते हुए भी अंधश्रद्धा या अतिश्रद्धा के कारण मौन है। या फिर यह साधुओं का धार्मिक आतंकवाद ही है जो सच्चे लोगों की जुबान बंद करवा देता है। साधुओं की यह गुटबाजी उनका अहम् उनकी नाम की लालसा, छपास का रोग उन्हें कहाँ ले जायेगा यह तो भगवान जाने पर जैनधर्म के पतन में उनका सहयोग अविस्मरणीय रहेगा।
सम्मान एवं उपाधियाँ
जैसाकि मैं पहले उल्लेख कर चुका हूँ लगभग किशोरावस्था से ही प्रवचन, लेखन का कार्य करता था। १९९३ से 'तीर्थंकर वाणी' मासिक पत्र का प्रारंभ किया। पत्रिका को संप्रदाय के संकुचित दायरे से निकाल कर विशाल जैनत्व के फलक पर स्थापित किया। उसमें संपादकीय, लेख, बालजगत एवं चिंतन विशेष के कारण सन् २००० में उपाध्याय ज्ञानसागरजी की प्रेरणा से मेरठ में स्थापित प्रथम 'श्रुत संवर्धन पुरस्कार' स्व. श्री रमेशचंदजी साहू के कर कमलों द्वारा प्राप्त हुआ। एवं सन् २००३ में पत्रिका के उत्तम प्रदान हेतु 'अहिंसा इन्टरनेशनल' दिल्ली द्वारा पूर्व राज्यपाल भाई श्री महावीर द्वारा पुरस्कृत किया गया। वास्तव में यह दोनों सन्मान मेरी संपादन कला एवं निर्भीक पत्रकारिता का ही सन्मान था। - मेरे लेखन आदि कार्यों के कारण मुझे हस्तिनापुर के त्रिलोक शोध संस्थान द्वारा 'जंबू द्वीप पुरस्कार' प्रदान किया गया तो पूज्य सहजानंदजी वर्णी के साहित्य के प्रचार प्रसार हेतु 'श्री सहजानंद वर्णी पुरस्कार' अहमदाबाद में गुजरात के राज्यपाल महामहिम श्री सुंदरसिंहजी के भंडारी के करकमलों से प्रदान किया गया।
मेरा गौरव यह रहा कि राष्ट्रीय स्तर का 'पू.ग.आ. ज्ञानमती पुरस्कार' जो प्रति पाँच वर्षों में प्रदान किया । जाता था (अब प्रतिवर्ष) वह सन् २००५ में मुझे प्रदान किया गया। जिसमें एक लाख रू. की राशि के साथ स्मृति चिन्ह आदि द्वारा भारत सरकार के गृहराज्यमंत्री श्री प्रकाशचंदजी जायस्वाल द्वारा प्रदत्त कराया गया।
इसी प्रकार उदयपुर समाज द्वारा 'वाणीभूषण', भोपाल समाज द्वारा 'प्रवचनमणि' एवं त्रिलोक शोध संस्थान । स्तिनापर द्वारा 'जानवारिधि की मानद उपाधियों से सन्मानित किया गया। इसके अलावा अनेक गोष्ठियों में । स्मृति चिन्ह आदि से सम्मानित किया गया हूँ।
गुजरात के महामहिम राज्यपाल द्वारा सम्मान
बात लगभग २० वर्ष पुरानी है। उस समय गुजरात के गवर्नर थे महामहिम श्री त्रिवेदीजी। अहमदाबाद में पू. आचार्य श्री विजय चंद्रोदय सूरीजी का चातुर्मास ससंघ सम्पन्न हो रहा था। वह वर्ष शायद पू. यशोविजयजी महाराज की ४००वी जयंति का था। उस कार्यक्रम में पू. महाराजश्री के प्रमुख कार्यकर्ता श्री अनिलभाई गाँधी ने मुझे आमंत्रित किया। पू. आचार्यश्री तो पहले से ही जानते थे। मैंने पू. यशोविजयजी महाराज के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर अपना आलेख भी प्रस्तुत किया। उस समय श्वेताम्बर मूर्तिपूजक संघने एक जैन विद्वान के रूप में माननीय महामहिम राज्यपाल श्री त्रिवेदीजी से शॉल ओढ़ाकर मेरा सम्मान कराया। इतना बड़ा सम्मान जीवन में प्रथम सम्मान था और वह भी एक विशाल संघ व प्रसिद्ध आचार्यश्री की उपस्थिति में। मेरी प्रसन्नता का अनुभव । उस दिन भी मैंने किया था और आज भी उसका स्मरण करके मन प्रसन्न होता है। इससे मुझे एक लेखक और ।