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मातिया हुआ कि इस भूकंप की चपेट में पूरा कच्छ ही धराशायी हो गया है। रापर में २६ जनवरी के जुलूस में जाते हुए सैंकड़ो बच्चे, अध्यापक टूटी हुई बिल्डींग के नीचे सदा के लिए सो गये। बड़े ही दर्दनाक समाचार थे। हमारे घर के थोड़ी ही दूर पूरी एक स्कूल की मंजिल ही जमीन में उतर गई। लगभग ५० बच्चे और कुछ अध्यापक काल के गाल में समा गये। शहर की अनेक बहुमंजिली इमारतें धंस गईं और हजारों मकानो में दरारें पड़ गईं। चारों
ओर हाहाकार का वातावरण। बिजली गुल, भयंकर ठंडी- कई रातें लोगों ने घरों से बाहर टंडी में मैदान में बिताईं। हमलोगों ने मकानो को जिसतरह हिलते हुए देखा, स्वयं को जिसतरह लड़खड़ाते हुए पाया लगा मौत बिलकुल निकट से होकर गुजर गई है। जैसे किसी बंदूक की गोली कंधे को छूते हुए निकल जाय। कच्छ का विनाश उसके चित्र इतने दर्दनाक थे कि उसका वर्णन ही करना कठिन है। सैंकड़ो लोग २५ की रात को सोये थे २६ की सुबह नहीं देख सके और जो गणतंत्र का आनंद मना रहे थे उनमें से अनेक काल-कवलित हो गये। इस मौत के मुँह से भी मानो भगवानने ही हम सबको बचाया है।
साधु संतों से संपर्क मेरी रूचि प्रारंभ से ही देव-शास्त्र-गुरू के प्रति रही है। मैं आर्ष परंपरा का समर्थक रहा हूँ। साधु भगवंत मेरे पूज्य रहे हैं। मुझे लिखने-पढ़ने का शौक रहा है और इसी संदर्भ में अनेक गोष्ठियों में, सभाओं में जाता रहा हूँ और इस कारण मेरा परिचय चारों संप्रदाय के महान आचार्यों से रहा है। यह मेरा सौभाग्य रहा है कि आचार्य तुलसीजी और आचार्य महाप्रज्ञजी के साथ मुझे एक ही मंच से अपने विचार व्यक्त करने का अवसर प्राप्त हुआ है। दिगम्बर संत आचार्य विद्यासागरजी. आचार्य वर्धमानसागरजी. आचार्य कनकनंदीजी, आचार्य कन्थसागर आचार्य विरागसागरजी, आचार्य रयणसागरजी, आचार्य सन्मतिसागरजी, उपाध्यायश्री ज्ञानसागरजी, मुनिश्री सुधासागरजी, मुनिश्री प्रमाणसागरजी, मुनिश्री समतासागरजी जैसे अनेक मुनिभगवंतो के उपरांत पू.आ.ग. | ज्ञानमतीजी का सत्संग निरंतर प्राप्त होता रहा है। ___ पू. विद्यासागरजी के साहित्य की समीक्षा लिखने का गौरव प्राप्त हुआ है तो मेरी साहित्यिक छबि को निखारने में पू.ग.आ. ज्ञानमतीजी का विशेष योगदान रहा है। मैंने उनके जीवन को लेकर छोटी सी पुस्तक भी लिखी है।। __ श्वेताम्बर साधुओं में आचार्य मेरुप्रभसूरीजी, आचार्य चंद्रोदयसूरीजी, आ. पद्मसागरजी, आ. यशोविजयजी, मुनिश्री वात्सल्यदीप आदि का संपर्क एवं सहयोग प्राप्त हुआ है। स्थानकवासी आचार्यश्री स्व. नानेशजी, देवेन्द्रमुनिजी, नम्रमुनिजी आदि का संपर्क रहा है। वास्तव में मैं आज जो थोड़ा बहुत लिख-पढ़ सका हूँ उसमें इन मुनिभगवंतो का आशीर्वाद ही मुख्य कारण रहा है।
रुचि
मेरी रूचि सर्वाधिक वाचन और लेखन में रही। मुझे हिन्दी साहित्य और गुजराती साहित्य दोनों को पढ़ने और लिखने में रूचि रही है। चूँकि मैं हिन्दी साहित्य का विद्यार्थी रहा हूँ अतः हिन्दी साहित्य के लेखक और कविओं से भी परिचित रहा हूँ। मुझे जैन साहित्य को पढ़ने और उसके परिप्रेक्ष्य में लेखन कार्य करने में विशेष आनंद प्राप्त । होता रहा है। और इसीसे मैं जो कुछ भी साहित्य सृजन कर सका हूँ वह किया है। ___ मेरी अन्य रूचियों में मुझे घुमक्कड़ी का अधिक शौक है। यात्रायें करना मुझे बहुत अच्छी लगती है। यद्यपि । इससे घर के लोग बहुत खुश नहीं है। क्योंकि रीढ़ की हड्डी के ऑपरेशन के बाद और अब घुटनों के दर्द के ।