________________
अभाव सर्व एवं सफलता की कहानी
189 हमलोग कार्य की व्यस्तता के कारण रेडियो पर समाचार सुन ही न सके। घर के चारों ओर पानी ही पानी भरा था। पहले सोचा कि आज न जायें। परंतु शशीभाई पारेख और मैंने जाने का मन बनाया। किसी तरह एक आटोरिक्सा में बैठकर रोड़वेज के बस स्टैण्ड तक पहुँचे। परंतु वहाँ सारी बसें बंद थीं। हमलोग रेल्वे स्टेशन पर पहुँचे परंतु भावनगर की ट्रेन बंद थी। इतना सब होने पर भी हमारी बुद्धि जैसे हमें किसी भयंकर त्रासदी की ओर
खींच रही थी, कहते भी हैं 'विनाशकाले विपरीत बुद्धि'। वहीं हमें एक टैक्सीवाला मिल गया। जो भावनगर का । था। जो सोच रहा था कि कोई सवारी मिल जाय तो भावनगर लौट जाऊँ। उसे हम मिल गये। आखिर मैं,
शशीभाई और एक भावनगर का सिंधी व्यापारी जो हमारी तरह ही भटक रहा था- सबलोग टैक्सी में चले। पानी जो रुकने का नाम नहीं ले रहा था- मूसलाधार बारिश, तेज हवा बढ़ती जा रही थी। हमलोग किसी तरह बावला तक पहुंचे तो वहाँ का नजारा ही पूरी बाढ़ का नजारा था। कहीं धरती दिखाई नहीं देती थी, लेकिन हमें सबुद्धि भी नहीं आ रही थी। हमलोग आगे बढ़े, गाड़ी ऐसे पानी में फँस गई कि खिड़की के काँच में से पानी की लहरे गाड़ी में आने लगी। थोड़ी ही दूर पर जैसेकि बाद में पता चला कि नदी में पूरा उफान था। रात के १११२ बज चुके थे। भयंकर रात थी चारों ओर घनघोर अंधकार, बारिश की बौछार और हम मौत के मुँह में। पीछे से किसी मारूति वान की लाईट हमारी ओर फैंकी जा रही थी। शायद उनका इशारा था कि आगे न बढ़ें। वह
गाड़ी भी भावनगर ही जा रही थी। आखिर रातभर हम उसी प्रवाह के बीच गाड़ी बंद करके भगवान का नाम । स्मरण करते रहे। सुबह जब कुछ पानी कम हुआ तो धीरे-धीरे आगे बढ़े। लेकिन हजारों गाड़ियाँ फँसी हुई पड़ी | थी। वृक्षों पर कई लाशें फूली हुई लटकी थी। अनेक पशु पानी में अर्धमृत या मृत अवस्था में बह रहे थे, रोंगटे
खड़े हो गये इस दृश्य को देखकर। किसी तरह बरवाला तक पहुँचे। वहाँ गाँव के लोगों ने जिसके घर में जो था वह खाने को दिया। किसी तरह रोते-गाते मौत से जूझते लगभग चार बजे भावनगर पहुंचे। चार घंटे का रास्ता । बीस घंटे में तय हुआ। वहाँ जाकर देखा तो मेरा घर भी कुछ तूट चुका था, बीजली के खंभे मुड़ चुके थे, टेलीफोन । के तार पूरे शहर में टूट चुके थे। भावनगर इस प्रलय की चपेट में सबसे अधिक क्षत-विक्षत हुआ था। यह सब देखकर मेरे तो होश उड़ गये। मैं प्रतीक्षा में था कि कब कोई बस मिले और अहमदाबाद भाग जाऊँ। मैंने तो अपना घर भी नहीं खोला कि कहीं करंट न लग जाये। पूरा शहर दिवाली में भी अंधकार में डूबा हुआ था। सर्वत्र । अंधकार, विनाश, मौत और शोक व्याप्त था। किसी तरह दूसरे दिन जो पहली बस मिली उससे अहमदाबाद भाग आया और फिर तबतक नहीं गया जबतकसब कुछ नोर्मल नहीं हो गया। जीवन में पहली बार इस प्रलय का अनुभव किया था। लेकिन आयुकर्म के उदय से और प्रभु की श्रद्धा से जान बच सकी। आज भी वह दृश्य । रोमांचित कर देता है।
भूकंप
सन् २००० में ऐसे ही एक मौत का सामना करना पड़ा। २६ जनवरी की सुबह जब सब लोग ठंडी के आनंद । को लेते हुए चाय की चुश्कियाँ भर रहे थे- एकाएक लगा जैसे पलंग हिल रहा है। सोचा अपने को ही कुछ ऐसी नींद आ रही होगी। लेकिन थोड़े समय में बर्तन आदि के गिरने की आवाजे आई, लगा किसी बिल्लीने बरतन पटक दिये होंगे। लेकिन थोड़े ही समय में तो भयंकर ऊहापोह होने लगा। लोग अपने घरों से भागने लगे। बाहर । निकल आये। देखा सारे के सारे मकान पत्तों की तरह हिल रहे हैं। ओवरहेड टेन्क का पानी उछल-उछल कर ! बाहर आ रहा है। जमीन पर रखी कारे ऐसे कूद रहीं हैं जैसे खिलौने की कारें बच्चे कूदा रहे हों। समाचारों से ज्ञात