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रचना संसार पुस्तक समीक्षा हिन्दी साहित्य समीक्षक : श्रीमती डॉ. ममता मिश्र
घरवाला घरवाला डॉ, जैन की सर्वप्रथम व्यंग्यात्मक काव्यरचना है। जिसका प्रकाशन सन् 1968 में जैन विजय प्रिन्टिग प्रेस ('जैनमित्र' कार्यालय) से हुआ था। मूलतः जब वे इन्टर आर्ट्स | में पढ़ते थे तभी भगवत स्वरूप भगवत की व्यंग्य रचना 'घरवाली' प्रकाशित हुई थी। उसी 'घरवाली' को उत्तर देने के लिए 'घरवाला' की रचना की गई थी। इसकी प्रेरणा उनके एक बुजुर्ग मित्र श्री , रघुवर दयालजी नारद ने यह कहकर दी थी कि 'तुमई कछु लिख | डारो' कृति की रचना सन् 1959-60 में हुई, पर प्रकाशक के अभाव में नौ वर्ष कापी में ही पड़ी रही। आदरणीय श्री कापडियाजीने पुस्तक को प्रकाशित कर जैन साहब को कवि के रूप में प्रस्थापित किया।
प्रस्तुत काव्य में 127 चतुष्पदियाँ हैं, जो एक घरवाली की मनोभावना को प्रस्तुत करती हैं। प्रत्येक नारी वह कितना ही स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करती हों परंतु घरवाले की चाह उसके हृदय में निरंतर गुदगुदाती रहती है। प्रायः सभी चतुष्पदियाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत की जा सकती हैं। परंतु उदाहरण के लिए एक ही काफी है।
लँगड़ा हो लूला हो चाहे, हो हन्सी सा वह काला। तीन तीन पत्नी दे गई हों, जिसे विधुरपद अति काला॥ पैदा हुई जो नारी कुलमें, तो मेरी यह इच्छा है
जैसा भी हो. दुबला-पतला, मिल जाये बस परवाला॥ कठपुतली का शोर
__कठपुतली का शोर डॉ. शेखरचन्द्र जैन की कविताओं का | संग्रह है, जिसका प्रकाशन सन् 1975 में हिन्दी साहित्य । | भंडार लखनऊ से हुआ था। जिसकी भूमिका हिन्दी के प्रसिद्ध कवि और उपन्यास श्री भगवतीचरण वर्मा (चित्रलेखा के उपन्यासकार)ने लिखी थी।कविता संग्रह डॉ. जैनने अपनी जीवन संगिनी को अर्पित की है जो उनकी साधना की चिरसंगिनी बनी रहीं। भगवतीचरण वर्मा के शब्दो में ही कहें तो 'उनकी कविताओं
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