Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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स
तिना संसार
|207] रामधारीसिंह 'दिनकर' ने दो शब्द लिखने की अनुकम्पा की थी। प्रस्तुत कृति में लेखक ने राष्ट्र, राष्ट्रीयता, उसके । पोषकतत्त्व और उसके विकास की यात्रा को आलेखित करते हुए, हिन्दी साहित्य से पूर्व अपभ्रंश साहित्य में राष्ट्रीयता
से प्रारंभ कर समस्त कालों के साहित्य में विकसित राष्ट्रीयता को प्रस्तुत करते हुए सन् 1968 तक की राष्ट्रीय यात्रा को प्रस्तुत किया है। पश्चात् दिनकर की कृतियों में जिन राष्ट्रीय भावनाओं का समावेश हुआ है उसका बड़ी ही तटस्थता और गम्भीरता से प्रस्तुतिकरण किया गया है। समग्रतामें देखें तो दिनकरजी की राष्ट्रीय रचनाओं में राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, युगीन परिस्थितियाँ अंकित हुई हैं। जिनमें क्रांति की आराधना, अतीत का गुणगान, गांधीनीति, वर्तमान का यथार्थ अंकन, अखंड भारत का समर्थन, राष्ट्रीयता का व्यापक दृष्टिकोण, राष्ट्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के प्रति आक्रोश और 1962 के चीनी आक्रमण में से जाग्रत राष्ट्रीय हुंकृति को प्रस्तुत किया गया
___ कृति में कवि का व्यक्तित्त्व प्रस्तुत करते हुए उनकी सभी रचनाओं का मूल्यांकन कृतियों के कथ्य के संदर्भ में किया गया है, और खंड काव्यों के मूल स्रोत का उद्घाटन करते हुए उन पौराणिक कृतियों की समीक्षा की गई है। दिनकरजी की अमर कृतियों में यदि 'रेणुका' और 'हुंकार' हैं तो प्रबंध काव्यों में 'कुरुक्षेत्र' और 'रश्मिरथी' वीररस के प्रेरणास्रोत हैं। 'उर्वशी' उनकी गीत-नाट्य कृति है जिसमें कवि का सौंदर्य बोध अंतर मन के प्रेम, काम आदि भावों को बड़े ही मानवीय धरातल पर प्रस्तुत किया गया है। कवि का प्रकृति प्रेम इस कृति में लबालब भरा हुआ है। लेकिन जोश का कवि सौंदर्य में भी उस वीरता को ढूँढता है। ___ कविने भावों के साथ भाषा, अलंकार, छंद एवं गीतों की जो समायोजना की है वह कृति को कालजयी बनाने में सक्षम है। इस कृति को राष्ट्रीय कवि दिनकर पर प्रथम शोध प्रबंध होने का गौरव प्राप्त हुआ था। इकाइयाँ और परछाइयाँ
TRE'इकाइयाँ और परछाइयाँ' डॉ. शेखरचन्द्र जैन एवं डॉ. सुदर्शन मजीठिया द्वारा संपादित दकादगा दस कहानियों का संग्रह है। जिसका प्रकाशन कमल प्रकाशन इन्दौर से सन् 1970 में
किया गया। 'समर्पण' भी बड़े ही व्यंग्यात्मक रूप से प्रस्तुत करते हुए संपादकद्वयने इस प्रकार किया है 'उन कहानीकारों को जो कहानी के नाम पर कहानी के अतिरिक्त सबकुछ लिखते हैं।
प्रस्तुत संग्रह की विशेषता यह है कि इसमें दसों कहानियाँ गुजरात के ही कहानीकारों
की हैं। यह अलग बात है कि हिन्दी साहित्य के रचना संसार की राजनीति में गुजरात के । कहानीकार कभी चमक नहीं पाये। डॉ. अम्बाशंकर नागर आदि कहानीकारों के साथ डॉ. शेखरचन्द्र जैन की 'अनचाहा' कहानी प्रस्तुत हुई है। प्रत्येक कहानी एक नई दिशा प्रस्तुत करते हुए कुछ न कुछ नया संदेश देती है। जो लगता है व्यक्ति और समाज व्यवस्था और उसमें पनप रही विकृति को उजागर करती है।