Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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मतियों के वातायतका पी-एच.डी. के नाम पर विषयों का पुनरावर्तन, चौर कर्म फूल-फल रहा है। पी-एच.डी. की फसल तेजी से बढ़ रही है- उसमें मोटे थोथे तो हैं पर विषय का सही प्रस्तुतिकरण शून्य सा ही लगता है। अतः शोध में 'शोध' दृष्टि होना- उस पर श्रम करना जरूरी है। मैं चाहता हूँ कि यदि एक विषय या व्यक्ति पर कार्य
हो चुका है तो उस विषय का पुनरावर्तन नहीं किया जाये। । प्रश्न आप राष्ट्रीय स्तर की अनेक संस्थाओं के महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं और हैं भी। इस संबंध में आपके विचार | उत्तर : मैं पदों पर रहा- कार्य किया- मैंने पदानुसार ईमानदारी से सत्य निष्ठा से कार्य किया- लेकिन वर्तमान
में प्रायः सभी संस्थाओं में 'जलकुंभी' फैल रही है। अतः जल दूषित हो और मैं देखता रहूँ यह संभव नहीं होने से 'जैसी की तैसी घर दीनी चदरिया' के अनुकूल उनमे मुक्त हो गया हूँ। गंदी राजनीति, कुर्सी का
मोह, जातिवाद की विष बेल संस्थाओं में ज़हर घोल रही हैं। । प्रश्न आधुनिकता की लहर में विकृत संस्कृति ने हमारे घरों, हमारे जीवन में प्रवेश कर लिया है। इससे बचने
के क्या उपाय हैं? । उत्तर : आत्म संयम व परिवार का संस्कारी वातावरण बनाना चाहिए। प्रश्न क्या आप मानते हैं कि वर्तमान में व्याप्त समस्याओं को सुलझाने में जैनधर्म-दर्शन संस्कृति एक महत्वपूर्ण भूमिका
निभा सकती है? उत्तर : अवश्य निभा सकती है। इसका प्रारंभ हम घर-परिवार से करें। संस्कारों में नैतिकता आये। स्कूली शिक्षा
के साथ जैनधर्म का भी संस्कृति के रूप में अध्ययन किया जाये तो समस्यायें पहले तो होंगी ही नहीं
यदि होंगी तो यह संस्कार का समाधान मंत्र कारगर होगा। प्रश्न एक लंबे समय से आप अहमदाबाद में रह रहे हैं। यहां की सामाजिक, पार्मिक, राजनैतिक, आर्थिक,
पृष्ठभूमि में जैनियों का क्या योगदान है? उत्तर : लगभग नहिंवत है। दुर्भाग्य है कि यहाँ की जैन संस्थायें सविशेष दिगंबर जैन संस्थायें अपनी वैमनस्य,
व्यक्तिगत द्वेषभाव एवं पक्षपात का शिकार बन कर घूमिल ही हैं दिगंबर जैन समाज आज भी यहाँ सुप्त
है- अस्तित्व रहित है। प्रश्न आपके जीवन पर किन विशिष्ट व्यक्तिों या व्यक्तित्व का प्रभाव पड़ा? उत्तर : मेरे जीवन पर प्रभाव में मेरे परिवार के अलावा मेरे प्राथमिक स्कूल के गुरू डॉ. रमाकांत शर्मा- (जो
बाद में डिग्री कॉलेज के आचार्यपद से निवृत्त हुए) मेरे पी-एच.डी. के मार्गदर्शक डॉ. अंबाशंकर नागर, । शिस्त हेतु मेरे एक आचार्य डॉ. वशी। सर्वाधिक प्रभाव मेरे पी-एच.डी. के विषय डॉ. रामधारीसिंह दिनकर, साधुवर्ग में आ. श्री विद्यासागर, आ. श्री वर्धमानसागर, आ. श्री तुलसीजी, आ. महाप्रज्ञजी, पू.आ. ज्ञानमतीजी एवं सामाजिक स्तर पर मेरी बहन के श्वसुर श्री हरदासजी ललितपुरवालों का विशेष
प्रभाव रहा है। प्रश्न जीवन में अनेक बार ऐसे क्षण आते हैं जिन्हें मुलाया नहीं जा सकता, बतायें? उत्तर : कृपया मेरी जीवनी देखें अनेक प्रसंग मिल जायेंगे। प्रश्न आपने समाज के विभिन्न रूपों में जो योगदान दिया है इससे जो अहसास आपको हुआ उससे आप संतुष्ट
हैं क्या? उत्तर : समाज को योगदान देने की कोशिश तो की- पर मैं अपने को इससे सफल नहीं मानता। मैं जिस स्तर ।