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प्रयाग द्वारा आयोजित अनेक गोष्ठियों में हिन्दी साहित्य पर शोधपत्र पढ़ने व इलाहाबाद, बेंगलोर जैसे स्थानों पर गोष्ठियों और कवि संमेलन का संचालन करने का मौका भी मिला। ___ चूँकि मैंने हिन्दी और जैन साहित्य का सृजन कार्य काव्य लेखन से किया था अतः कभी गोष्ठियों, कभी संमेलनो में भी जाने की मौका मिला। अनेक कवि संमेलनो का संचालन भी किया। मेरा यह गौरव रहा है कि मैं कवि संगीतकार रवीन्द्र जैन, शैल चतुर्वेदी, अंबाशंकर नागर, किशोर काबरा, हास्य सम्राट सुरेन्द्र शर्मा आदि कवियों के साथ काव्य पठन कर सका। मैंने स्वयं भावनगर, अहमदाबाद, सुरेन्द्रनगर, बैंगलोर में कवि गोष्ठियों का आयोजन या संचालन किया है। तात्पर्य कि मेरी यह प्रवचन, संचालन, आलेखन प्रस्तुतिकरण की प्रवृत्ति १९५६ से चल रही थी। वैसे अध्ययन के दौरान स्कूल, कॉलेज, युनिवर्सिटी में वाक् प्रतियोगिता व कवि सम्मेलनो से यह प्रवृत्ति अधिक मजबूत हुई।
लेखन कार्य काव्य लेखन
लेखन कार्य का शौक तो बचपन से ही था। कॉलेज के समय से ही भीतपत्र में लिखता था। अनेक गोष्ठियों कवि संमेलनो में जाने के कारण कुछ न कुछ नया लिखता ही रहता था। प्रारंभिक कवि संमेलन की याद आज भी गुदगुदा जाती है। अहमदाबाद के उपनगर बापूनगर में एक कवि संमेलन और मुशायरा था। मुझे भी आमंत्रण मिला। श्री शास्त्रीजी मुझे ले गये। कामील साहब भी परिचित थे। पहलीबार कविता के मंच पर गया था। पसीना छूट रहा था। ऊपर से रोब झाड़ने को किसी की काली शेरवानी पहनी थी। चुश्त पायज़ामा- मंच पर पहुँचे। ड्रेस देखकर लोग बड़ा शायर समझ बैठे। लोग सलामें ठोक रहे थे और मैं अंदर ही अंदर घबड़ा रहा था। दो घंटे में चार-पाँच बार तो पेशाब कर आया। खैर भगवान ने लाज रख ली। कविता पाठ सस्वर किया। इससे झिझक भी दूर हुई। फिर तो अनेक कवि संमेलनो में गया। काव्यपाठ किया और संचालन किया।
लेखन कार्य को सर्वाधिक प्रोत्साहन दिया आदरणीय डॉ. रमाकांतजी शर्माने। हमारी काव्य गोष्ठी जो साबरमती नदी के किनारे महालक्ष्मी मंदिर में नियमित होती थी। भाई पारसनाथ, अनंतरामजी बड़े उत्साह से सभी आयोजन करते। अनेक मित्र इकट्ठे होते। कविता पाठ करते। हम सभी मित्रों की कविता का प्रथम संग्रह । 'चेतना' के नाम से प्रकाशित हुआ था।
जब में इन्टर आर्ट्स में था तब मैंने श्री भगवत स्वरूप भगवत का काव्य संग्रह घरवाली पढ़ा था। उस समय मुझे कविता के लिए निरंतर प्रेरित करनेवाले मेरे बुजुर्ग स्व. श्री रघुवर दयाल गुप्ताजी ने जो स्वयं कविता करते थे-ने प्रोत्साहित किया और कहा 'तुमई कछु लिख डारो' बस प्रेरणा मिली और मैंने घरवाली के उत्तर में १२६ चतुष्पदी का 'घरवाला' व्यंग्य काव्य लिख डाला जो बाद में १९६८ में सूरत से प्रकाशित हुआ। इसकी भूमिका लिखी थी प्रसिद्ध कवि काका हाथरसी ने। उसी श्रृंखला सन १९७५ में 'कठपुतली का शोर' लखनऊ से । प्रकाशित हुई जिसकी भूमिका प्रसिद्ध कवि उपन्यास कार श्री भगवतीचरण वर्माने लिखी थी। अन्य कवियों के । साथ भी एक-दो काव्य संग्रह प्रकाशित हुए।
गद्य लेखन पद्य के साथ गद्य लेखन भी चलता रहा। सन १९७२-७३ में मेरी थीसिस 'राष्ट्रीय कवि दिनकर और उनकी । काव्य कला' जयपुर से प्रकाशित हुई जिसमें दो शब्द स्वयं दिनकरजी ने लिखने की कृपा की थी।
कहानी लेखन का विशेष शौक था। अतः ‘इकाईयाँ-परछाइयाँ' संग्रह का संपादन डॉ. मजीठिया जी के साथ ।