Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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बार कुछ कैडेट गिर जाते पर पास का कैडेट भी उसे उठा नहीं सकता। वह व्यवस्था मिलिट्री वाले स्वयं करते । अग्नि परीक्षा से गुजर रहे थे। सुबह समय से पहुँचने के लिए एक ही बाथरूम में दो-तीन लोग निर्ग्रन्थ होकर स्नान करते ।
भोजन की समस्या
कामी में पहले ही दिन से भोजन का प्रश्न खड़ा हुआ। वहाँ शाकाहारी व माँसाहारी भोजनालय थे। हमारे 1 अधिकांश साथी २७० मैं से लगभग १७५ माँसाहारी थे। हम ८०-९० कैडेट ही शाकाहारी मैस में खाते थे।
हमारे साथ भी लगभग ६०-७० ऐसे कैडेट थे जो अंडे खाने से परहेज नहीं करते थे। माँसाहारिओं को नास्ते में ऑमलेट बड़ा खाने में माँसाहारी व्यंजन मिलता था। परिणाम यह हुआ कि शुद्ध शाकाहारी हम १०-१५ कैडेट 1 ही रह गये। मैं इसका सैक्रेटरी चुना गया। मैं ब्रिगेडीयर साहब से मिला और हमने उनसे निवेदन किया कि प्रातःकाल का नास्ता, भोजन, बड़ा खाना में जो भी बजट माँसाहारिओं को दिया जाता है उतना ही बजट हमें भी दिया जाये । वे बोले 'शाकाहार में ऐसा क्या है?" उन्होंने मुझे ही मैनु बनाने का कार्य सौंपा। मैंने भी प्रातःकालीन | नास्ते में दूध, सीरीयल, ब्रेड, जॉम, बटर व फल रक्खे। बड़ा खाने में नागपुर से मिठाई, नमकीन, खीर आदि का ! मैनु दिया । मज़े की बात तो यह हुई कि हमारा बजट माँसाहारियों से भी अधिक हो गया। तीन महिने ठाठ से भोजन किया। पासींग आऊट परेड में सफल रहे और सैकण्ड लेफ्टिनन्ट का कमिशन प्राप्त किया।
इन तीन महिनों के दौरान कुछ मज़ेदार घटनायें भी हुईं। सेन्टर के पास ही एक गर्ल्स हाईस्कूल था । कैडेट्स
! शाम खेल-कूद के समय लड़कियों को देखकर आँखे सेका करते। रात्रि में उलल-झलूल बाते, नौनवेजीटेरीयन ! जोक्स और धूम्रपान चलता रहता।
हमलोग इतवार को अपनी-अपनी साईकलें ट्रेन में लादकर नागपुर आते। पूरा दिन घूमते, खरीदी करते। मैं । अपने काका ससुर श्री चंद्रभान जैन के वहाँ जाता, खाना खाता, शाम को सभी लौट आते ।
इस प्रकार खट्टी-मीठी यादों को लेकर ट्रेनिंग पूरी कर सैकण्ड लैफ्टिनेन्ट बनकर सूरत लौटा। पद की खुमारी
सैकण्ड लेफ्टीनन्ट होने का एक खुमार ही अलग था। पूरे ड्रेस में निकलते तो एक गौरव का अनुभव होता । । रैंक में हमारा स्थान सब इन्स्पेक्टर से ऊँचा होने से जब कोई पुलिस सब इन्स्पेक्टर सेल्युट करता तो हमारा मन प्रसन्न होता और थोड़ा अभिमान भी । परेड़ पर २०० कैडेट होते। उन्हें परेड़ कराने एन. सी. ओ., जे.सी. ओ. आते। उन सब पर रौब जमाना भी आनंद देता ।
सन १९६८ में २६ जनवरी को परेड में एन.सी.सी. की प्लाटून भी थी । प्रश्न खड़ा हुआ कि आगे कौन रहे ? | एन.सी.सी. या पुलिस। दूसरे हम सभी कमिशन्ड ऑफिसर थे। पुलिस सब इन्स्पेक्टर की रैन्क के लोग हमें सैल्युट करते थे। मामला कुछ गरमाया । पर प्रॉटोकोल के अनुसार हमारी ही बात मानी गई। वह भी एक विशेष परेड थी।
पूरी कॉलेज में छात्रों पर अत्यंत प्रभाव रहता । मेरे और किशोर नायक दोनों का कॉलेज में विद्यार्थियों पर सर्वाधिक प्रभाव था । हमारे काम भी अत्यंत व्यवस्थित होने से आचार्य श्री वशी साहब बहुत खुश रहते। हमारे 1 नवयुग कॉलेज का युनिट नया था अतः हमारे पास सर्विस रायफल होतीं और हम पूरे युनिट के इन्चार्ज थे। ! कॉलेज द्वारा हमें स्पेश्यल ऑफिस, प्यून और हथियार कक्ष दिये गये। इस विशेष सुविधा से हमारा स्थान कॉलेज में विशेष था।
उन दिनों परैड में उपस्थित कैडेट को प्रति परेड सात क्रीम बिस्कीट दिये जाते थे। कभी-कभी बिस्कुट की ।