Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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भर
Immang
अगाव संघर्ष एवं सफलता की कहानी
1511 नेरोगेज की बापुगाड़ी भी स्वयं में आनंदवर्धनी रेल थी। समुद्र के किनारे घोघा बंदर के निकट- खाड़ी तो बिलकुल शहर को छूती हुई। यहाँ घोघा बंदर में लोक गेट पद्धति है, जहाँ ज्वार के समय पानी को लोक करके मालवाहक जहाजों को तट पर लाया जाता है। जहाज खाली होने तक लोक रहता है। बाद में लोक खुलने पर भाटा के समय जहाज पुनः मूल समुद्र में पहुँच जाता है। यहीं घोघा के प्राचीन जैन मंदिर हैं। जिनका सहस्रकूट मंदिर दर्शनीय है।
शहर राजा साहब के प्रबंधन में होने से भव्य इमारतें, चौड़ी सड़कें मनमोहक हैं। मज़ेदार बात यह है कि बहुत बड़ा विशाल मैदान पर नाम गधेड़िया। यद्यपि सरकार ने नामकरण जवाहर मैदान के नाम से किया है पर सभी परिचित हैं गधेड़िया नाम से ही। यहाँ लोग सुखी-संतोषप्रिय हैं। शहर के प्रमाण में शिक्षण का व्याप अधिक है।
अब यहाँ भावनगर युनिवर्सिटी भी विद्यमान है। यहाँ सहशिक्षण के दो आर्ट्स कॉलेज, दो कॉमर्स कॉलेज, एक । सायंस कॉलेज, दो महिला कॉलेज, एक पोलिटेकनिक, एक इन्जीनीयरींग कॉलेज, एड मेडिकल कॉलेज, एक । बी.एड कॉलेज, एक लॉ कॉलेज एवं अनेक हायर सेकण्डरी, सैकण्डरी और प्राथमिक स्कूल है। शहर में प्रायः
सभी जातियों के छात्रालय हैं। जिसमें ग्राम्य विस्तार से आनेवाले छात्रों के निवास व भोजन की पूरी सुविधा है। । यद्यपि शहर में सभी जाति, वर्ण, धर्म के लोग रहते हैं, परंतु दरबार (क्षत्रिय) व पटेलों के साथ शाह (जैनों) की विशेष संख्या है। व्यापार अधिकांश जैनों के हाथो में है।
श्री महावीर जैन विद्यालय (जैन छात्रालय)
यहीं भावनगर में १९६९ में श्री महावीर जैन विद्यालय' (वास्तव में जैन छात्रालय) की स्थापना हुई थी। तीन मंजिल का मकान था जो शहर से दूर तलाजा रोड़ पर था। जो संस्कार मंडल से लगभग १ कि.मी. की दूरी पर था। संस्कार मंडल से विद्यालय तक और आगे मीलों तक कोई बस्ती नहीं थी। कुछ रबारियों के कच्चे घर व दोर बाँधने की जगह थी। पास ही नाले के किनारे कुछ छुट-पुट झोंपड़े थे। जहाँ अधिकांशतः देशी शराब की भट्टियाँ गेरकानूनी तौर पर कार्यरत थीं। यहाँ ये सब असामाजिक लोग गेरकानूनी कार्य करते थे। इस कारण से होस्टल में विद्यार्थी डर के मारे कम ही आते थे। कोई गृहपति के रूप में रहने को तैयार नहीं था। होस्टेल में ३०-४० विद्यार्थी थे, जबकि १०० विद्यार्थियों के रहने की पूर्ण व्यवस्था थी। विद्यालय का स्थानिक ट्रस्टी मंडल गृहपति की खोज में था।
हमारी कॉलेज में श्री शशीभाई पारेख जो जैन थे- प्राध्यापक थे। अच्छे व्यवसायी के पुत्र थे। विनल मोटर नामकी फर्म थी। एकदिन आ. त्रिवेदीजीने उनसे कहा, 'क्या जैन-जैन की रट लगाते हो। यह शेखरभाई तुम्हारे जैन हैं। उन्हें मकान क्यों नहीं दिलवाते?' शशीभाई ने आश्वासन दिया। उन्होंने विद्यालय के मंत्री श्री वाड़ीभाई शाह से चर्चा की। मेरी बात-चीत कराई वाड़ीभाई स्वयं अच्छे व्यापारी एवं रोटेरीयन थे। व्यवस्थापक की दृष्टि । से बड़े चुस्त थे। उनके सामने समस्या थी कि बोर्डिंग श्वेताम्बर जैनों द्वारा, श्वेताम्बर विद्यार्थियों के लिये है। और मैं था दिगम्बर जैन। उन्होंने मुंबई हेड ऑफिस संपर्क किया और वहाँ से आदेश प्राप्त हो गया। __मुझे मकान चाहिये था और उन्हे गृहपति। सो बात बन गई। मैं निडर होकर कुछ कर दिखाने की तमन्ना से इस जंगल में भी सहर्ष आ गया। मुझे रहने के लिये पूरा बड़ा मकान जिसमें बड़े-बड़े बैडरूम, किचन आदि पूर्ण सुविधा थी। पहली बार इतना बड़ा मकान रहने को मिला था... अपार संतोष मिला। नौकर-फोन की सभी । सुविधा थी। २०० रू. और वेतन के रूप में स्वीकृत हुए। यह तो वैसा ही हुआ कि चाही थी बैठने को डाली और मिल गया पूरा वृक्ष। मकान की समस्या हल हुई। सो अपने परिवार के साथ यहीं आकर रहने लगा। कॉलेज का