Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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जैन दर्शन में मार्गदर्शक
भावनगर युनिवर्सिटी के कुलपति के रूप में अहमदाबाद की गुजरात कॉलेज के प्रोफेसर श्री पंड्याजी की नियुक्ति हुई। वे फिलोसोफी के प्रोफेसर थे। उनके पदग्रहण करते ही विरोधी दल के लोगों ने हमारे ग्रुप के प्रति
और सविशेष मेरे प्रति उन्हें पूर्वाग्रह से भर दिया। उस समय मुझे भावनगर युनिवर्सिटी में जैन दर्शन के विशेष अध्येता के रूप में जैन दर्शन में पी-एच.डी. के निर्देशक की मान्यता प्राप्त हो चुकी थी। मैं शुभेच्छा मुलाकात के लिए श्री पंड्याजी से मिलने गया। पूर्वाग्रह से भरे हुए वे पद की गरिमा और सौजन्यता भूलकर मुझसे उलझ
गये। उन्होंने पहला वाक्य ही यह कहा कि- 'मैं जैन दर्शन को कोई दर्शन नहीं मानता।' मैंने भी उन्हें अपने | स्वभाव के अनुसार तर्क और आक्रोश से उत्तर दिया और बाहर निकल गया। उन्होंने बदले की भावना से मेरी
जैनदर्शन की मार्गदर्शक की मान्यता रद कर दी। इससे मुझे कोर्ट में जाना पड़ा और उनके विरुद्ध लड़ना पड़ा। हिन्दी भाषा के लिए संघर्ष
उस समय भावनगर में चार आर्ट्स कॉलेज थे और संयोगवशात चारों में प्राचार्य हिन्दी विषय के अध्यापक | थे। यह बात वहाँ के सभी कॉलेजो के प्राध्यापकों को खटकती थी। पर हम चारों आचार्य श्री जयेन्द्रभाई त्रिवेदी, । डॉ. सुदर्शन मजीठिया, डॉ. शेख और मैं। चारों की सक्षमता के कारण कोई हमारे सामने खुले रूप से टीका
टिप्पणी नहीं कर पाता था। ___सौराष्ट्र युनिवर्सिटी की परंपरा पर भावनगर युनिवर्सिटी ने भी कॉलेज के प्रथम, द्वितीय और तृतीय तीनों वर्षों में अंग्रेजी विषय के विकल्प के रूप में हिन्दी विषय अनिवार्य था तो प्रथम व द्वितीय वर्ष में वह द्वितीय विषय के रूप में अनिवार्य था। इससे पूरे कॉलेज में हिन्दी पढ़ानेवाले अध्यापकों की संख्या अधिक थी। कुछ हिन्दी । विरोधी तत्वों ने पूर्वाग्रही कुलपति के साथ एकबार ऐसा षड़यंत्र किया कि- एकबार की फैकल्टी मीटिंग में डॉ. । मजीठीया, मेरी एवं शेख साहब की अनुपस्थिति में हिन्दी की अनिवार्यता को ही खत्म कर दिया। जब हमें यह ! पता चला तो बड़ा धक्का लगा। उस समय मैं हिन्दी अभ्यास समिति का अध्यक्ष था। मुझे लगा कि जब भी युनिवर्सिटी का इतिहास लिखा जायेगा तो यह उल्लेख होगा कि डॉ. जैन के अध्यक्षपद में हिन्दी विषय की दुर्गति । हुई। हमलोग व्यक्तिगत रूप से सभी फैकल्टी के सदस्यों से मिले उन्हें अपना पक्ष समझाया। विरोधी लोग तो खुश । थे। पर हमारी मुँहदेखी बात करके दोषारोपण दूसरों पर करते और हमारे सामने सहानुभूति प्रकट करते। प्रस्ताव ! पास हो चुका है। ऐसा बहाना बनाकर अपना बचाव कर लेते।
मैंने, डॉ. मजीठिया और डॉ. शेखने युक्ति की और सभी सदस्यों से कहा कि यह निर्णय जल्दबाजी में हुआ । है, हमें पुनः विचार हेतु फैकल्टी की मीटिंग आहूत करनी चाहिए। हमारा पक्ष आप लोग सुन लें, फिर चाहे वह । निर्णय करें। लोगों ने इसपर अपनी सहमति व्यक्त करते हुए हमें अपने हस्ताक्षर प्रदान किए। हमने कुलपति महोदय को पुनः फैकल्टी बुलाने हेतु निवेदन किया जिसे उन्होंने खारिज कर दिया। अतः मैं तत्कालीन गुजरात राज्य के महामहिम राज्यपाल श्री त्रिवेदीजी- जो पदानुसार युनिवर्सिटी के कुलाधिपति थे- उनसे मिलकर उन्हें पूरी परिस्थिति समझाई। इसमें श्री जे.पी. पांडे साहबने हमारी सहायता की। कुलाधिपतिजी ने हमारे पक्ष को । सुना, समझा और कुलपतिजी को पुनः फैकल्टी की मीटिंग में इस विषय पर चर्चा करने का आदेश दिया। अनेक आनाकानी के बाद आखिर आर्ट्स फैकल्टी की मीटिंग हुई। पहली बार कुलपति स्वयं उपस्थित रहे। हम लोगों ने अपने पक्ष को राष्ट्रभाषा के महत्त्व के संदर्भ में प्रस्तुत किया और मतविभाजन पर आखिर हमारी विजय हुई। यह !