Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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1411 थी। उस समय श्री भट्टजी दूसरी युनिट के इन्चार्ज थे। उन्हें ही ट्रेनिंग में भेजा जाना था। पर उनका काम शिथिल
और अव्यवस्थित था। वशी साहब उनसे खुश नहीं थे। एकबार एन.सी.सी. का केम्प कहीं बाहर गया हुआ था। । वहाँ केम्प में नदी में कुछ छात्र तैरते-तैरते दूर चले गये.... परेशानी हुई। भट्टजी ने छात्र के डूबने का समाचार
दिया। इससे पूरा कॉलेज एवं मैनेजमेन्ट परेशान हो गया। यद्यपि कोई डूबा नहीं था। बस वशी साहब ने भट्टजी को | तुरंत इन्चार्ज से हटा दिया और मुझे चार्ज दे दिया। दूसरे ही महिने ट्रेनिंग का सिलेक्शन होना था। मैंने तो कभी । स्काऊट तक की ट्रेनिंग नहीं ली थी। पर शरीर व स्वास्थ्य के मद्देनजर मेरा ही नाम भेजा गया। अहमदाबाद में | मिलिट्री के बड़े ऑफिसर शायद ब्रिगेडीयर कक्षा के समक्ष इन्टरव्यू था। उन्होंने जैन सरनेम देखते ही व्यंग्य किया । 'आप भाजी पाला खानेवाले क्या इतनी कठिन ट्रेनिंग ले पायेंगे?' मैं भी दृढ़ था। मैंने भी उसी दृढ़ता से उत्तर 1 दिया कि 'सर! हाथी और घोड़े घास खाते हैं। पर सबसे शक्तिशाली प्राणी हैं। मैं चेलेन्ज उठाने को तत्पर हूँ।' । मेरी दृढ़ता हाजिर जवाबीपना देखकर मेरा चयन हो गया।
कामटी में ट्रेनिंग । सूरत लौटा। एन.सी.सी. ऑफिस से केप्टन साहब का फोन आया। उन्होंने मुझे बुलाकर कामटी जो नागपुर । के पास है वहाँ का टिकट वोरंट और ड्रेस आदि देकर मिलिट्री ट्रेनिंग में भेज दिया। नये अनुभव का नया जोश,
नया आनंद...। ___ ओ.टी.एस. (ओफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल) कामटी नागपुर से लगभग १०-१५ कि.मी. की दूरी पर है। हमारी
बैच में २१७ कैडेट थे। प्रायः पूरे भारत के कॉलेजों से अध्यापकगण इस सैकण्ड लेफ्टीनेन्ट की ट्रेनिंग और कमीशन हेतु भेजे गये थे। लगता था पूरा भारत एक जगह इकट्ठा हो गया था। विविध धर्म, भाषा, बोली, रीतिरिवाज के लोगों का जमघट था। बड़ा अच्छा लगता था। हम लोगों को रहने के लिए बैरेक थी। एक बैरेक में हम ।
-५० लोग रहते। सबको एक पलंग. टेबल.की. एक कपबोर्ड दिया गया था। खाना मैस में और नहाना । कॉमन बाथरूम में। यह समूह जीवन का केन्द्र था। प्रारंभ में हमें यहाँ के तौर तरीके बताये गये। दूसरे दिन से ही । परेड़ प्रारंभ हुई। मिलेट्री के जे.सी.ओ. एवं एन.सी.ओ. हमें ट्रेनिंग देते। वे लोग चूँकि नियमित मिलिट्री के लोग । थे अतः बड़े ही मुस्तैद, कड़क व पूरे समय श्रम कराते थे। यहाँ कोई छूटछाट या मश्काबाजी नहीं थी। पहलीबार । पता चला कि परेड़ क्या होती है। जी भी धबड़ाता। पर सब मिलजुलकर एकदूसरे को हिम्मत देते। प्रातः लगभग ५ बजे उठना। प्रतिदिन दाढ़ी बनाना। ड्रेस बराबर पॉलिश वाली चमचमाती रखना। प्रतिदिन बूटपॉलिश अनिवार्य था। एक मिनट की देरी भी दंड दिलवाती। परेड के बूट अलग, कैनवास के अलग, खेल के अलग। दिनभर ड्रेस
और बूट ही बदलते रहते। हर सीनियर को सेल्युट मारते मारते हाथ ही दुःख जाते। पर शिस्त या डिसिप्लीन क्या होती है यह सीखने का मौका मिला। हमें यहाँ हरप्रकार की परेड एवं हथियारों में बंदूक (३०३), एल.एम.जी., गन, ग्रेनेड, पिस्तोल, क्लोजअप बैटल आदि की ट्रेनिंग दी गई। पूरी ट्रेनिंग प्रेक्टिकल ही होती थी। उसके दौरान कूदना, ऊँची कूद, लंबी कूद, छलांग, दीवार फांदना, रस्से से उतरना आदि ट्रेनिंग के साथ सिविल डिफेन्स की भी ट्रेनिंग दी गई। शाम को कोई न कोई गेम खेलना भी अनिवार्य था। एक-एक दिन पहाड़ सा बीत रहा था। ट्रेनिंग की स्मृति से ही आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। ट्रेनिंग बड़ी कठिन थी। क्रोलिंग सबसे कठिन, कष्टदायक, हाथ में वज़नदार एल.एम.जी, कंधे पर बंदूक, बैल्ट में बँधी हुई पानी की बोतल, पीठ पर बंधा हुआ थैला..... चलना ही चलना....। जरा भी थके तो फटीक.... थक कर चूर हो जाते। अरे कमर में पानी की बोतल तो होती। पर बिना आज्ञा के पानी पी ही नहीं सकते थे। रिलेक्स के समय के अलावा पानी पीना भी गुनाह। परेड में कई ।