________________
जैसा जाना
109
a सरलता में मुस्कराता व्यक्तित्व जैन साहित्य जगत में भला ऐसा कौन होगा जो शेखरजी के बहुमुखी व्यक्तित्व को न जानता हो। समन्वयवादी दृष्टिकोण से परिपूर्ण उनका सादगीभरा जीवन युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत है।
कुर्सी पर बैठी-बैठी स्मृतियों को कुदेर रही हूँ। ध्यान सन् १९९० के आसपास घूमने लगता है। शेखरजी यहाँ नागपुर में पर्युषण पर्व में प्रवचन देने आये थे। एक दिन आ. भाभीजी के साथ घर भी आये। पारिवारिक संदर्भ था। हम लोग भी अहमदाबाद गये, तभी से आत्मीयता अधिक स्थापित हुई और निकट से जानने का मौका मिला। इसके बाद तो शेखरजी के सम्पर्क में आने के अनेक प्रसंग आये।
शेखरजी ने अपने पी.एच.डी. शोध प्रबंध में महाकवि दिनकर के कृतित्व का बड़ा सुंदर हृदयग्राही मंथन किया है। दिनकरजी मेरे भी प्रिय साहित्यकार रहे हैं। पढ़कर प्रसन्नता हुई कि विद्वान लेखक ने दिनकर की गहराई को छूने का अच्छा प्रयत्न किया है। डॉ. शेखरजी की हिन्दी साहित्य सेवा, प्रेम, सृजनशीलता अप्रतिम रही। ___ यथार्थ में शेखरजी की वाक्पटुता स्पृहनीय है, सराहनीय है। विषय की प्रस्तुति में उनकी स्पष्टता और
निर्द्वन्द्वता झलकती रहती है। सरलता के साये में उनका व्यक्तित्व छिपता नहीं बल्कि छलकने लगता है। 'तीर्थंकर । वाणी' के सम्पादकीय भी अपनी कहानी कहते नजर आते हैं। सामाजिक और धार्मिक विसंगतियों को उजाकर
करना उन्हें बखूबी आता है। एक सफल पत्रकार का उत्तरदायित्व भली भाँति निभाते चले आ रहे हैं। ___ अंत में मेरी कलम बड़ी प्रसन्नता और खुशी से लिख रही है कि शेखरजी का खिलखिलाता मधुर व्यक्तित्व सामाजिकता और समरसता को जगाता रहे और स्वस्थ रहते हुए साहित्यिक क्षेत्र को समृद्ध करता रहे।
प्रो. डॉ. पुष्पलता जैन (नागपुर)
व सदाचारी एवं निर्भीक विद्वान्
भारत की भूमि त्यागी-तपस्वी एवं संत मुनियों की पावन रज से प्रसिद्ध एवं पवित्र है। विद्या के क्षेत्र में सेवा करने वाले सरस्वती पुत्रों का भारतीय एवं जैन संस्कृति के उत्थान में अनुकरणीय योगदान हैं। जैनधर्म के विद्वानों का स्वागत सम्मान होना चाहिए। यह सम्मान व्यक्ति का नहीं, ज्ञान का जिनवाणी का है। जिनागम की रक्षा के लिए विद्वानों की रक्षा अनिवार्य है।
कुछ प्रतिभाएं व्यक्तित्व, कार्यशैली, वैदुष्य और व्यवहार की सुगंध स्वयंमेव ही दिग्दिगंत को सुवासित करती रहती हैं। ऐसे विशाल, गंभीर, मधुर व्यक्तित्व के धनी समाजोत्थान, सम-सामायिक चिंतक, स्नेहिल मनीषी श्री डॉ. शेखरचंद जैन के परिचय की आवश्यकता नहीं रहती हैं। आप अपने कुशल नेतृत्व के द्वारा जन-जन के हृदयों तक पहुंच गये हैं। आप श्रमण और श्रावकों में बढ़ रहे शिथिलाचार के विरोधी हैं। आपने अनेक मंचों से गोष्ठियों के माध्यम से एवं व्यक्तिगत चर्चाओं के द्वारा पूर्वाचार्यों के उदाहरण देकर मुनियों का संवर्धन भी किया हैं। आप परम मुनिभक्त होते हुए भी शिथिलाचारी त्यागियों का सख्त विरोध भी करते हैं और उपगूहन एवं स्थितिकरण भी करते हैं। ___ आप सूरत में नवयुग आर्ट्स एवं सायंस कॉलेज में प्रोफेसर ते तब हमारे जैन विजय प्रिन्टींग प्रेस में एवं जैनमित्र कार्यालय में प्रकाशन के कार्य में हमारे दादाजी श्री मूलचंदजी कापडिया की निश्रा में कार्य करते थे। १९८१ में श्रवणबेलगोला में बाहुबली महामस्तकाभिषेक के समय राष्ट्रसंत, सिद्धांत चक्रवर्ती आचार्य विद्यानंदजी महाराज के सानिध्यमें “कापड़ियाजी- अभिनंदन" समारोह सम्पन्न हुआ था। कापड़ियाजी का अभिनंदन अन्ध ।
।