Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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अभाव - संघर्ष एवं सफलता की कहानी मेरी कलम से.....
-डॉ. शेखरचन्द्र जैन मेरा जन्म अहमदाबाद में हुआ या पैतृक गाँव अस्तारी (तह.निवाड़ी जि. टीकमगढ़) में इसका मुझे कोई स्मरण नहीं। मुझे यह पता है कि पिताजी ने जब मेरा नाम स्कूल में लिखवाया तो जन्मस्थान में अहमदाबाद लिखवाया था। जबकि मेरे दादाजी कहते थे कि मेरा जन्म गाँव में हुआ था और तुरंत ही कुछ महिनों बाद पिताजी मुझे अहमदाबाद ले गये थे। सत्य जो भी हो मैं इतना जानता हूँ कि मैंने जबसे कुछ होश संभाला अपने को अहमदाबाद में ही पाया और इसलिए मैं अपनी जन्मभूमि अहमदाबाद को ही मानता हूँ।
स्कूल के प्रमाणपत्र के आधार पर मेरी जन्मतारीख २ दिसंबर १९३६ लिखी है जबकि मेरी जन्मकुंडली के अनुसार मेरा जन्म सन् १९३८ की २८ दिसंबर की रात्रि में । पोष कृष्ण सप्तमी को लगभग १२ बजे के पश्चात हुआ जैसाकि मुझे मेरी माताने बताया ।
और कुंडली में भी ग्रहों के अनुसार यही समय बनता है। जैसाकि मेरी माँ ने मुझे बताया। प्रथम संतान पुत्र के जन्म से पूरा परिवार प्रसन्न हो उठा। आर्थिक स्थिति के अनुसार। आनंदोत्सव मनाया गया। प्राचीन रिवाजों के अनुसार सारे कार्यक्रम होते रहे। पिताजी का अहमदाबाद आना मेरे पिताजी की गाँव छोड़कर अहमदाबाद आने की भी एक करूण कथा है
चौधरी रज्जूलाल मेरे दादा अपने पिता चौधरी खुमानलाल के द्वितीय पुत्र थे। वे कटेरा गाँव में गोलालारीय समाज के प्रतिष्ठित व्यापारी श्रावक थे। अति धार्मिक प्रकृति के व्यक्ति थे। उन्होंने कटेरा गाँव में वेदी प्रतिष्ठा करवाई थी। अतः समाज की ओर से उन्हें 'चौधरी' की पदवी प्रदान की गई थी। उस समय बुंदेलखंड में ऐसा प्रचलन था कि वेदी प्रतिष्ठा कराने वाले को 'चौधरी' की पदवी एवं पंचकल्याणक कराके गजरथ चलवाने वाले को 'सिंघई' की पदवी प्रदान की जाती थी। इसलिए वेदी प्रतिष्ठा कराने के कारण । हमारे तत्कालीन परिवार को चौधरी की पदवी से विभूषित किया गया था।