Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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भाव संघर्ष एवं सफलता कीया
1251 का मकान मिला। जिसका मलाल २७ वर्षों तक १९६९ से १९९८ तक जबतक यहाँ शिरोमणी में नहीं आये तब तक बना रहा। भाई सनत और महेन्द्र, पुत्र राकेश, अर्चना और अशेष के विवाह और मेरे विवाह की ४१वीं वर्षगाँठ १९९७ में यहीं मनाई गई। ___ एक प्रसंग और लिख दूँ। सन् १९५४ में मुझे टाईफोईट हो गया। उस समय पूरे विस्तार में गोमतीपुर में श्री गोविंदप्रसादजी वैद्य का दवाखाना था। एक-दो छोटे वैद्य या डॉक्टर थे। चूँकि ऐसी मान्यता थी कि टाईफोईड या मोतीझरा किसी देव-देवी का प्रकोप है। अतः एक कमरे के एक कोने में बिस्तर लगाया गया। नीम के पत्ते बाँध
गये। बिना हाथ-पाँव धोये किसी का भी अंदर आना वर्जित हो गया। परदे के नाम पर बोरी या चद्दर को बाँधा । गया। चूँकि मेरे पिताजी इसपर कम विश्वास करते थे। उन्होंने गोविंदप्रसादजी वैद्य से जाँच करवाई। उस समय । पाँच रू. फीस देकर वैद्यजी को घर बुलवाना, दवा लाना यह खर्च भी भारी लगता था। मेरे पिताजी ने खर्च की चिंता न की और पर्ण रूपेण इलाज कराया। यह बात मेरे बाल मानस पर घर कर गई कि दवा का खर्च कितना
परेशान करता है। उसपर फल-फलादि और मोसंबी का रस भी आवश्यक हो जाता है। मेरे किशोर मन पर यह । भाव अंकित हुआ कि जब कभी मैं बड़ा होऊँगा, पैसे-टके से कुछ समर्थ होऊँगा, कुछ बन सकूँगा तो एक । औषधालय का निर्माण कराऊँगा जिसमें गरीबों की अच्छी जाँच हो सके। उन्हें दवा आदि देकर मदद दे सकूँ। सन् । १९५४ में किशोरावस्था में बोया गया यह बीज मन के अज्ञात कोने में दबा रहा वह सन् १९९८ में ४४ वर्ष के । पश्चात अंकुरित हुआ और इसी भावना से मैं 'श्री आशापुरा माँ जैन अस्पताल' का प्रारंभ करा सका। मेरी दृष्टि । से यही सर्वश्रेष्ट मंदिर है।
शिक्षा
प्राथमिक शिक्षा
मुझे याद है कि पिताजी मुझे अहमदाबाद नगरपालिका के रखियाल हिन्दी प्राईमरी स्कूल में दाखिला दिलाने । ले गये थे। वहाँ हेड मास्टर साहब ने पिताजी से पूछा की लड़का कितने साल का है तो उन्होंने अंदाज से कहा किहोगा छह सात वर्ष का। और हेडमास्टर साहबने कद-काठी देखकर आठ वर्ष का लिख दिया। इस प्रकार मेरी जन्मतारीख जो कुंडली के अनुसार २८ दिसंबर १९३८ पड़ती है। वह स्कूल में २ दिसंबर १९३६ लिखी गई। मुझे स्मरण है कि १५ अगस्त १९४७ को जिस दिन देश स्वतंत्र हुआ था उसदिन हमें स्कूल में पेड़े बाँटे गये थे।
और तिरंगे का एक एल्युमिनियम का बेज दिया गया था। हमारे प्राथमिक स्कूल के हेडमास्टर थे श्री मन्नालालजी । तिवारी। कक्षा ४ तक रखियाल स्कूल में पढ़ाई की। कक्षा ५ से ७ तक रायपुर हिन्दी स्कूल में अध्ययन किया। यहाँ श्री विश्वनाथजी मिश्र आचार्य थे। यह वह समय था जब अहमदाबाद में हिन्दी माध्यम की कक्षा १ से ४ तक चार-पाँच स्कूले ही थीं। श्री विश्वनाथजी ने अपनी जिम्मेदारी से कक्षा ५ से ७ तक की कक्षायें प्रारंभ कराई थीं। जो बादमें म्युनिसिपालिटी में मान्य हुई। रायपुर हिन्दी स्कूल उस मकान में था जहाँ वर्तमान में एम.पी. आर्ट्स महिला कॉलेज है। यहाँ श्री रमाकान्तजी शर्मा अध्यापक थे। जो इस प्राथमिक स्कूल में अध्यापक थे। बाद में तो वे युनिवर्सिटी और कॉलेज में प्राचार्य हुए। वे बड़े ही संवेदनशील युवक थे। कुछ करने की तमन्ना वाले थे। उनका मुझपर विशेष स्नेह था। मेरे मन में भी उनके प्रत्ये अति आदरभाव था। वे कवि थे और विद्यार्थीओं को निरंतर प्रोत्साहित करते थे। इस प्रकार १९५२ में मैंने कक्षा ७ की परीक्षा जो बोर्ड की होती थी उसे पास की।