Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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वापसफलताकातदान
11278 गुस्सा उतारने की भावना जागी और मैंने वहीं खिड़की पर बैठकर पेशाब कर दी। पेशाब खिड़की पर लगे
टीन के वेन्टीलेशन पर गिरी और उसके छीटे पंडितजी पर गिरे। फिर क्या था..? पंडितजी रात्रि में २ बजे । हाथ में टार्च लिये और डंडा लिये रौद्र रूप में आ धमके। मैं तो तुरंत दुबक कर सो गया था। पंडितजी ने
सबको जगाया। मुझे घूरते हुए शंका व्यक्त करते हुए पूछा 'तुमने मूता है?' मैं भी अनजान सा बनकर अपनी । चड्डी देखकर बोला 'नहीं साहब।' पंडितजी ने सबसे पूछा। सभीने 'ना' कहा। बस फिर क्या था। सभी का
नास्ता अनिश्चितकाल के लिए बंद। आखिर पंडितजी थक गये। यह बात किसी को बर्षों तक पता नहीं चली। हाँ! अपनी बहादुरी की चर्चा में मैंने अवश्य गुरुकुल छोड़ने के बर्षों बाद कुछ मित्रों से कही। आज उसका स्मरण आता है तो लज्जा और दुःख दोनो होते हैं।
खुरई गुरुकुल में पूजा, दर्शन, स्वाध्याय के जो बीज अंतरमें अंकुरित हुए वे ही कालांतर में वटवृक्ष बने। वास्तव में जैन संस्कारों की नींव यहीं से रखी गई। इसी प्रकार गुरूकुल में निरंतर आयोजित वाकप्रतियोगिता, निबंध लेखन में अभ्यास के कारण मैं वक्ता और लेखक बन सका।
गुरुकुल में सभी छात्रों को शिर मुडवाना पड़ता था और टोपी पहनना अनिवार्य था। खुरई के बाज़ार में पूर्व अनुमति के बिना नहीं जा पाते थे। वहाँ हमें लोग गुरुकुल के मुंडे या गुरुकुल की टोपी के नाम से ही जानते थे। ___ मैंने किसी तरह एक वर्ष यहाँ पूरा किया और आते समय अपनी पेटी में फालतू सामान भरकर वहाँ से जो भागा बस फिर कभी उस तरफ नहीं गया। मैं खुरई से तो पिंड छुडाकर भाग आया। अहमदाबाद में स्कूल में प्रवेश की समस्या खड़ी हुई। मैं यहाँ से ७वीं पास करके गया था, और वहाँ भी सातवीं में ही लिया गया था। फिर मेरा नाम भी बदल गया था। कुछ परिचितों के साथ अहमदाबाद के खाड़िया विस्तार में स्थित भारती विद्यालय में दाखिला लेने पहुँचा। पुराना ७वीं पास का ही प्रमाणपत्र बताया। बीचके एक वर्ष का क्या हुआ यह पूछने पर मैंने कहा कि मैं म.प्र. खुरई में आठवीं में पढ़ता था- मैं आठवीं पास हूँ। श्री के.टी. देसाईजी ने मेरे कुछ टेस्ट लेकर मेरी मनगणंत कहानी पर शिक्षणाधिकारी से स्वीकृति लेकर कक्षा ९वीं में भरती कर दिया। यहीं से मैंने ११वीं तक शिक्षा प्राप्त की। आज भी मुझे स्मरण आने पर उस असत्य के प्रति शिकायत होती है। यहाँ गुजराती माध्यम था। अतः मुझे प्रारंभ में कठिनाई पड़ी। पर मैं उसमें भी पार उतरता रहा।
कॉलेज शिक्षा
१९५६ में मेट्रिक पास करने के पश्चात मैं प्राथमिक स्कूल में अध्यापक के रूप में नौकरी करने लगा था। मुझे मेट्रिक में कौन से विषय लेना चाहिए, इसका कुछ पता भी नहीं था। मैंने तो फिजिक्स, केमेस्ट्री एवं अंकगणित जैसे विषय रखे थे। बीजगणित और भूमिति छोड़ दी थी। यद्यपि गणित से मेरा ३६ का संबंध रहा है। पर उत्तीर्ण होने जितने अंक ले ही लेता था। इसी वर्ष अहमदाबाद में सेंट झेवियर्स कॉलेज में सायंस विभाग का प्रारंभ हुआ था। मुझे प्रवेश भी मिल रहा था। पर सायंस पढ़ना मेरे बूते की बात नहीं थी। अतः उसी वर्ष गजरात लॉ सोसायटी द्वारा प्रारंभ किये गये एच.ए. कॉलेज ऑफ कोमर्स के प्रथम वर्ष में दाखिला ले लिया था। यहीं से मैंने प्रथमवर्ष कामर्स की परीक्षा अच्छे अंको से पास की। परंतु आगे पढ़ना संभव नहीं था। क्योंकि नौकरी पर पहुँचने के लिए कुछ पीरियड छोड़ने पड़ते थे।
उसी समय एक नया मोड़ भी आया। उस समय बृहद मुंबई राज्य होने से अहमदाबाद उसी का अंग था।