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देशी - ग्लोबल व्यक्तित्व के धनी
आदरणीय डॉ. साहब को मैं बाल्यकाल से ही जानता हूँ। पूज्य पिता प्रो. डॉ. फूलचन्द जैन प्रेमी जी के अभिन्न मित्र एवं अग्रज होने के नाते आपको मैंने हमेशा 'अंकलज' कहकर संबोधित किया है यद्यपि इस संबोधन के पीछे मेरे अव्यक्त संबोधन 'ताऊ जी' का भाव ही सदा प्रबल रहा है। मैंने हमेशा उन्हें इसी भूमिका में पाया भी है। 'गलत को गलत और सही को सही निर्भीकता पूर्वक कहना और चाहे वह घर हो अथवा कोई भी मंच तत्काल उसी स्थान पर कहना'- मैं सदा से आपकी इसी अदा पर कायल रहा हूँ। बातचीत का शुद्ध देशी अंदाज और ग्लोबल चिन्तन जहाँ आपको बुन्देलखण्ड की मिट्टी से जोड़कर रखता है वहीं दूसरी ओर आपको विश्व व्यापक भी बनाता है। पूरी दुनिया के दिलों पर राज करनेवाले जितने भी लोग हुये हैं वो कभी किसी की तरह नहीं बने बल्कि हमेशा अपनी ही तरह रहे और अपने ही अंदाज में लोगों को प्रभावित किया है। डॉ. साहब को मैं उन्हीं लोगों की श्रेणी में मानता हूँ ।
मेरा अहमदाबाद जाना भी हुआ, आपके घर पर अपने घर की तरह रहा भी । छात्र जीवन में जब कभी भी आप संगोष्ठियों में मिलते हमेशा मेरा उत्साहवर्धन करते और नवांकुर लेखक होते हुए भी मेरा उत्साह बढ़ाने की दृष्टि से मेरे आलेख तीर्थंकर वाणी में भी आपने प्रकाशित किये। आज भी आप मेरे प्रेरणास्रोत हैं, हमेशा मार्गदर्शन देते हैं। इस दुनिया में कोई भी बड़ा कार्य करना हो तो उत्साहवर्धन करने वाले कम मिलते हैं। मुझे स्मरण है श्रवणबेलगोला में मस्तकाभिषेक - 2006 के उपलक्ष्य में आयोजित ऐतिहासिक जैन विद्वत् सम्मेलन की तैयारियों के दौरान उपसर्गों का जब दौर चला तब आपने उत्साहवर्धन किया था और उस सम्मेलन ने ऐतिहासिक सफलता भी प्राप्त की।
आपकी संपादकीय, मौलिक चिन्तन तथा वक्तव्यों में वो प्रभाव रहता है कि लोग बरबस ही आकर्षित हुए चले जाते हैं। मेरी भावना है कि आपकी वाणी आपका ज्ञान इसी प्रकार देश विदेश में फैलता रहे और आप हमेशा जिन शासन की ध्वजा दिदिगंत में फहराते रहें ।
डॉ. अनेकान्तकुमार जैन (नई दिल्ली)
एक बहु-आयामी व्यक्तित्व
डॉ. शेखरचन्द्र जैन जैन विद्या के उन अध्येताओं में है, जो अपनी स्पष्टवादिता और प्रखर पत्रकारिता के कारण अधिक जाने जाते हैं। डॉ. शेखरचन्द्र जैन से मेरा परिचय लगभग दो दशक से भी अधिक का है। वे एक सफल अध्यापक, लेखक एवं पत्रकार हैं फिर भी उनकी प्रतिभा को जो निखार मिला है वह उनकी स्पष्टवादी पत्रकारिता के कारण ही है। आजकी स्वार्थ लिप्त चाटुकारी पत्रकारिता से कौसों दूर हैं। दूसरे आपकी विशेषता यह है कि आप पत्रकारिता के क्षेत्र में भी साम्प्रदायिक आग्रहों और दुराग्रहों से मुक्त रहे हैं। यही कारण है कि ! आपकी 'तीर्थंकर वाणी' को जैन समाज के श्वेताम्बर - दिगम्बर दोनों ही समाज में समान प्रतिष्ठा प्राप्त है । वे अच्छे लेखक और वक्ता तो हैं ही, किन्तु उससे अधिक एक समाजसेवी और मानवता के उपासक भी है। प्राणीमात्र के प्रति आपकी करूणा सदा प्रवाहमान रही है। आपके नेतृत्व में जो अस्पताल संचालित हो रहा है वह उनकी सेवा भावना का जीवन्त प्रमाण है । इस प्रकार डॉ. शेखरचन्द्र जैन एक बहु-आयामी व्यक्तित्व के धनी हैं। जैन समाज एवं जैन विद्या की जो वर्तमान स्थिति है, उसके लिए उनके मन में गहरी पीड़ा है - जिसने उन्हें अ