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HANEURALIA
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यह अचरज की बात नहीं, यह कोई बात अजानी ।
मिट्टी को अच्छी लगती है, मिट्टी की कहानी॥ वह मेरे अस्पताल में भी दर्दी बनकर आए, हकारात्मक वैचारिक दृढ़ता से ओपरेशन के दर्द को भी सामान्य दर्द बनाया। अपने आनंदी और हसमुँख स्वभाव से लोगों का मन जीतने की कला को वह बखूबी से जानते हैं। वे डॉक्टर को भी रिलेक्स कर देने की क्षमता रखते हैं।
वे प्रसिद्ध प्राध्यापक रह चुके हैं, और विद्यार्थियों के बीच तटस्थता से अपने हर विधान, विभाग और कार्य को सम्पन्न किया है। वर्तमान समय में भी अस्पताल में सेवा का कार्य करके सद्भाव और मैत्री के द्वारा लोगों को लाभान्वित कर रहे हैं। ___ मेरी यही शुभकामना है कि परमात्मा उनको दीर्घायु दे और काम करने की शक्ति दे। वृद्धत्व में भी युवाओं जैसा स्वास्थ्य दे।
मस्तक पर आकाश उठाएँ, परती बार्षे पांवों से। तुम निकलो जिन गाँवो से, सूरज निकले उन गाँवो से॥
डॉ. रमेश आर. विरडीया (भावनगर) - एक निर्भीक सेनापति
कुछ मित्रता ऐसी होती है जिसको हम नाम नहीं दे पाते सिर्फ अनुभव ही कर पाते हैं जो संबंध, रिश्तेदारी से भी आगे होते हैं ऐसा ही कुछ रिलेशन संबंध मेरा डॉ. शेखरचंदजी के साथ है। मेरा उनका परिचय पिछले ५० वर्षों से है। सामाजिक धार्मिक प्रसंगो में मिलना जुलना होता था। मैं अपने धंधे में, वे अपने लेखन कार्य में व्यस्त रहते। करीबी मामला पड़ा जब १९८४ में हमने पंचकल्याणक किया। गोमतीपुर मंदिर का मुख्य ट्रस्टी होने के । नाते पंचकल्याणक की सारी जिम्मेदारी मुझ पर थी। उस समय पंचकल्याणक बहुत कम होते थे। मेरी मनसे इच्छा थी कि ऐसा भव्य कार्यक्रम हो कि लोग सालों याद करें। मेरे पास सेना थी हथियार थे पर कमी थी सिर्फ सेनापति की। मैं चाहता था मेरे ही समाज का कोई ये कार्य वहन करे। उस समय डॉ. शेखरचंदजी भावनगर कॉलेज में प्रोफेसर थे। मेरा मन चाहता था कि वे इसे सम्हालें, उनसे फोन से बात की ओर सारी परिस्थिति बताई। मेरे आश्चर्य की सीमा ना रही उन्होंने तुरंत जवाब दिया 'हुकमचंद तुम चिंता मत करना अगर एक माह की छुट्टी भी लेनी पड़ी तो मैं अहमदाबाद आ जाउँगा। और वही हुआ। वे एक माह की छुट्टी लेकर अहमदाबाद आ गये। जब तक प्रतिष्ठा पूरी नहीं हुई वे रात दिन काम में लगे रहे। प्रतिष्ठा के कार्यक्रम की ऐसी रूपरेखा बनाइ कि वह पंचकल्याणक अहमदाबाद के इतिहास में सुवर्ण अक्षर से लिखा गया। कवि सम्मेलन, सर्वधर्म सम्मेलन, संगीत संध्या, गवर्नर श्री की उपस्थिति, मीनिस्टरों की भरमार ने कार्यक्रम में चार चांद लगा दिये। तब मुझे डॉ. शेखरचंद की प्रतिभा का गहराई से परिचय हुआ।
उनकी प्रवचन शक्ति, लेखन शक्ति और कंट्रोल पावर गजब का है। सभी कहते हैं उनका स्वभाव कडक है पर में कहूँगा अगर कडक अनुशासन ना हो तो कार्यक्रम शत-प्रतिशत सिद्ध नहीं हो सकता। ऐसी प्रतिभा के धनी को साथ लेकर हमने शिवानंदनगर मंदिर का भी पंचकल्याणक किया और हम सफल रहे। हमने जो सहजानंद वर्णी पुरस्कार देना प्रारंभ किया उसकी प्रेरणा हमें उन्हीं से मिली है।
आज जो उनका अभिनंदन होने जा रहा है सही अर्थ में अभिनंदन उनका नहीं समग्र जैन समाज का है और