Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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71 में जैनत्व ने डॉ. जैन की विश्वफलक पर एक अलग पहचान प्रस्थापित की है। उनका अभिनंदन, कंटकाकीर्ण राह
पर चलते प्रज्ञापरुष के स्वावलम्बन का सम्मान है। | जिनवरों से हमारी प्रार्थना है कि इस कर्मठ सेवाव्रती एवं धर्मनिरत विद्वान को निरामय एवं शतायु का वरदान । परिप्राप्त हो।
. डॉ. चन्द्रकान्त मेहता पूर्व उपकुलपति, गुज. युनिवर्सिटी, अहमदाबाद
- एक विरल व्यक्तित्व ____ डॉ. शेखरचंद्र जैन के संबंध में कुछ कहना आसान काम नहीं है। उनका व्यक्तित्व बहुआयामी ही नहीं कैलडोस्कोपिक है। वे प्रारंभ में प्राध्यापक थे, फिर लेखक, साहित्यकार हुए, फिर प्राचार्य हुए, कृतकार्य होकर
जैनाचार्य हो गए। विचित्र बात यह है कि आस्तिक होते हुए भी साहित्य को छोडकर किसी धर्म-संप्रदाय में । दीक्षित नहीं हुये और मेरे शिष्यों में एक राधावल्लभी, दूसरा ब्रह्मकुमारी, तीसरा स्वामिनारायण चौथा वैष्णव | और पाँचवा जैनाचार्य हुआ। डॉ. शेखर जैन अच्छे वक्ता तो प्रारंभ से ही थे। आचार्य रजनीश की शैली, छटा
और उन्मुकता से वे बोलते हैं। फिर वे कवि भी हैं उससे उनके भाषण प्रभावशाली होते हैं। मैंने अभी गत वर्ष ही
जैन इण्टरनेशनल सेनफ्रांसिस्को में उन्हें सुना। जैन दर्शन के वे अध्येता हैं, किन्तु कहने का ढंग उनका अपना है। । उनकी वाणी में ओज है, वे शब्द को साकार कर देते हैं, वे जब कोई बात कहते हैं तो ठेठ हृदय तक पहुँचती है।
मैं किसी बज्म तक नहीं महदूद, अंजुमन अंजुमन हुनर मेरा।
लब्ज को छूकर फूल कर दूं, यही है फन, यही हुनर मेरा॥ डॉ. शेखर को मैं बहुत लम्बे अर्से से जानता हूँ। वे एम.ए. में पढ़ते थे तब से। किन्तु मेरे निकट संपर्क में वे । तब आये, जब उन्होंने मेरे निर्देशन में शोध-छात्र के रूप में प्रवेश प्राप्त किया। धुन के वे पक्के हैं, जो ठान लेते हैं, करके ही मानते हैं। शोधार्थी के रूप में मेरे पास आये तो कहने लगे, 'मुझे हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि दिनकर पर शोधकार्य करना है।' उन दिनों भाषा भवन के निदेशक ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता उमाशंकर जोशी थे। वे मानते थे कि जीवित कवियों पर शोध नहीं हो सकती। मेरे सामने एक समस्या उपस्थित हो गई। विभागाध्यक्ष के । रूप में मैंने शेखर का समर्थन किया। प्रवेश विलंबित हो गया, किन्तु अन्ततोगत्वा जोशीजी सहमत हो गए और शेखर को पीएच.डी. में इच्छित विषय पर प्रवेश मिल गया। मेधावी और परिश्रमी तो वे थे ही, जल्दी ही उनका शोध-प्रबंध पूरा हो गया।
उनकी मौखिक परीक्षा के लिए नियुक्त हुए अलीगढ मुस्लिम युनिवर्सिटी के वाईस चान्सेलर प्रो. हरवंशलाल । शर्मा। बड़े आदमियों की बड़ी बातें। बहुत लिखा पढ़ी की तब जाकर आने को राजी हुए। आखिर आये। मौखिक परीक्षा हुई। जमकर प्रश्नोत्तर हुए। बोलने में तो शेखर तेजरर्रार थे ही, बोलते चले गए। लगभग एक डेढ घण्टे में मौखिकी पूरी हुई। परीक्षा के बाद उनको बाहर भेज दिया और मौखिकी की रिपोर्ट लिखना शर्मजी ने शुरू किया । अंग्रेजी में एक पेज लिखा, दूसरा पेज लिखा, तीसरा पेज पूरा होने को आया। मैं दम साधे देखता रहा, शांत बैठा रहा। परीक्षा शेखर की थी, पर इतनी लम्बी रिपोर्ट देखकर धबरा मैं रहा था कि डॉ. शर्माजी मेरे शोध-छात्र को पास करेंगे या फैल। मेरे निर्देशन में दो दर्जन शोधार्थी पीएच.डी. हुए पर मौखिकी परीक्षा की इतनी बड़ी रिपोर्ट तो कभी किसी परीक्षक ने नहीं लिखी। आखिर शर्माजी ने रिपोर्ट पूरी की। अंतमें लिखा, 'शोधार्थी को ससम्मान ।
Maheme