Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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काव्यांजली
चर्तुमुखी प्रतिभा धनी, अन्तर्राष्ट्रीय मान, पुरुष्कार - सम्मान से, बहती रहती शान । गौरव - गरिमा अतुल है, विद्वत् रत्न महान वाणी भूषण प्रवचनमणि, ज्ञान वारिधि सुजान । सम्पादन सम्यक किया, लेखन श्रेष्ठ सटीक 'तीर्थंकर वाणी' बनी त्रैभाषा में नीक । अस्पताल अध्यक्ष हो, कर्मठ सहित विवेक शिक्षक-शिक्षार्थी स्वयं, विद्या व्यसनी एक । पुरुषारथ के संग में रखते सम्यक् बोध । शाम-दाम-दण्ड भेद से प्राप्त सफलता शोध। पूज्य ज्ञानमती मात का, हार्दिक रहा दुलार अध्यक्ष विद्वत् संघ के प्रगतिशील व्यवहार । कृतित्व और कर्तृत्व की बनी श्रृंखला ज्येष्ठ जीवन के हर क्षेत्र में प्राप्त फलश्रुति श्रेष्ठ । शाश्वत सुख, चिरायु सुख सर्व सुमंगल इष्ट 'विमल' शब्द सुमनांजली, मंगल भाव विशिष्ट ॥
मानसपुत्र डॉ. शेखरचन्द्र जैन
बोध वाक्य सत् शिव सुन्दर अक्षर पुरुष सूक्ति प्रभाकर 'स्मृतियों के वातायन से' मानसपुत्र डॉ. शेखरचन्द्र जैन आगम और अध्यात्म मार्ग पर
भगवत्ता को व्यक्त कर रहे तीर्थंकर वाणी का सम्पादन कर उत्कृष्टता जिनकी कालातीत श्रुत
सत्य लिये साहित्य गगन पर आच्छादित, अनुपम, असीम
अनंत की ओर आत्मिक लिये सर्वज्ञता के शाश्वत स्वर । विपुलबोध मानस तरंग की पूर्ति पर ॥
बोधवाक्य सत् शिव सुन्दर । अक्षर पुरूष सूक्ति प्रभाकर ॥
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महाकवि योगेन्द्र दिवाकर
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