Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
View full book text
________________
मातयाकवातायनस
64 । न शास्त्री हैं, न पंडित
फिर भी विद्वानों के शिरमौर हैं- प्रिय हैं, मानव मन के पारखी हैं, इसीलिये विद्वानों के लिए जूझते हैं क्रोधित होते हैं, गुटबंधी से, विद्वानों की अवहेलना से, श्रमण और श्रावक की पतन की बात उजागर करने से, बहुत बार विवाद और आतंक के घेरे में भी आते रहे लेकिन हरबार विजय का शंखनाद किया हैक्योंकि सत्य का साथ और संतों का आशीर्वाद साथ रहा है। जैन एकता के हिमायती होने से, संप्रदाय की संकीर्णता से मुक्त रहे। यह बात कुछ लोगों को पसंद नहीं आई फिर भी चलित नहीं हुए, अपने ध्येय से इसीलिए जैन समाज में आदरणीय हैं, देश और परदेश में। अपने मूल स्रोत से बँध शेखरचंद्रजी बुंदेलीभाषा के माहिर हैं मित्रों की मेहफिल में जब मिलते हैं तो हास्य के फुब्बारे झरते हैं, तब लगता नहीं ये आंतरराष्ट्रीय विद्वान हैं। ऐसे सहृदय के धनी है डॉ. शेखरचंदजी। अपने अनुभव से अभावों की पीड़ा को समझते हुए, अस्पताल का निर्माण कर निःशुल्क सेवा प्रदाता हैं। मानवता की महक से महकते हैं शेखरचंदजी, सही में शेखरचंदजी शीखरस्थ हैं। मेरे आत्मीय, आप निरोगी, स्वस्थ और सेवारत रहो यही प्रार्थना है जिनेन्द्र देव से।
'शुभाशंसनम्' अभिनन्दन
डॉ. विमलाजन 'विमल' (फिरोजाबाद, डॉक्टर शेखरचंद्रजी शुभकामना अनंत शत बसना हर्षित रहे, वैश्विक हो यशवन्त। आशिष अरु शुभकामना, भरि अभिनन्दन ग्रन्थ, चर्तुविधि संघ दे रहा, रही न कोई ग्रन्थ। आप 'आप' अनुपम रहे, अद्वितीय कर्तृत्व, वाणी वरदा प्रिय रमा, युगलाशीष व्यक्तित्व। वृष वर्षा वारिद बने, पूमे देश-विदेश जैन संस्कृति सभ्यता, किया प्रचार विशेष।