Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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शौचा
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। एक विनयांजलि मेरी - ससुर जी के लिए मेरे ससुरजी कठोर अनुशासन प्रिय, मृदु हृदय के धनी है, उन्होंने अपने परिवार को सुसंस्कारित किया, । परिवार को एक माला में पिरोकर रखने की अद्भुत क्षमता है मेरे सास ससुर में।
शादी के पूर्व जो सुसंस्कार मेरे माता-पिता से मुझे मिले। तदनुसार ही ससुराल में भी वैसी ही अनुभूति हुई। कोई फर्क महसूस नहीं हुआ। जो स्नेह मुझे मेरी ससुराल में मिला उसे मैं अपना सन्मान मानती हूँ। ____मेरे ससुरजी जो बहुत संवेदनशील हैं, गरीब मानवता की सेवा में अपना जीवन लगाकर 'आशापुरा माँ जैन होस्पिटल' में अपना तन-मन-धन अर्पण करने में निरंतर रत हैं। जो करूणा व्यक्तियों के प्रति उनके मन में है अन्यत्व देखने में विरल ही मिलती है। __सच्चे देव शास्त्र गुरू में उनकी पूर्ण आस्था है जो 'तीर्थंकर वाणी' पत्रिका और उनके लिखे साहित्य से
परिलक्षित है। निर्भीक होकर स्पष्ट और सत्य व्यवहार का ही पक्ष लेते हैं। ___ मैं इसे अपना सौभाग्य मानती हूँ कि इतने अच्छे सुसंस्कारित सरल व्यवहारी दयालु हृदय के परिवार
की बड़ी बहू हूँ। ____ मैं कामना करती हूँ कि मेरे ससुरजी की कीर्ति चारों ओर फैले और दीर्घ काल तक उनकी छत्रछाया हम सबको मिलती रहे।
सौभाग्यवती ज्योति राकेश जैन
(पुत्रवधु)
- मेरे ससुरजी
आपका अहमदाबाद जैन समाज द्वारा जो सम्मान होने जा रहा है उससे हम सभी बहुत प्रसन्न हैं। आप चहुँमुखी प्रतिभा के धनी हैं और आपको कई अंतराष्ट्रीय ख्यातियाँ प्राप्त हैं। साथ ही आपको भारत एवं विदेश । में भी जैनधर्म के प्रवचनार्थ बुलाया जाता है।
आपने जीवन के हर पहलू और धर्म की क्षितिज को अपनाते हुए जो कार्य किये हैं वे सचमुच प्रशंसनीय और सम्मान के पात्र हैं।
मैं अर्थात् आपकी पुत्रवधु को यह लिखते हुये अत्यन्त गर्व की अनुभूति महसूस हो रही है कि आपको इतना बड़ा सम्मान प्राप्त होने जा रहा है। आपके विचारों को समाज में इसी तरह प्रतिष्ठा मिलती रहे ऐसी भगवान से प्रार्थना है।
आपकी पुत्रवधु नीति
- हमारे दादाजी हम लोग बहुत खुश हैं कि मेरे दादाजी का टागोर हॉल में इतना सम्मान हो रहा है। हमारे लिए ये बड़े गर्व की बात है। मैंने तो अपनी सब सहेलियों को भी बताया है। मेरे दादाजी हमें बहुत अच्छे लगते है। लेकिन कभी-कभी गुस्सा भी हो जाते हैं। हमें बहुत दुःख होता है लेकिन वो हमारे अच्छे के लिए ही करते हैं। या हमने कोई भूल करदी होती है। मेरे दादाजी अमेरिका या कहीं और बाहर जाते हैं तब घर सूना-सूना लगने लगता है। लेकिन जब ।