Book Title: Shekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Author(s): Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publisher: Shekharchandra Jain Abhinandan Samiti
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PROUTION
REAS
शुभेच्छा
HARE
| 53] विभाग कार्यरत हैं, जिनमें निःशुल्क उपचार का प्राविधान किया गया है। उपरोक्त अस्पताल को निर्मित करने में डॉ. शेखरचंद जैन ने सर्वप्रथम स्वयं आर्थिक योगदान दिया तथा अपने परिवार के सदस्यों से दिलाया व श्रद्धालु महानुभावों से आर्थिक योगदान प्राप्त करके समन्वय ध्यान साधना केन्द्र के नाम से ट्रस्ट स्थापित किया तथा अस्पताल की देखरेख में वे आज भी अपना समय देते हैं। आज लोग उनकी सफलता को बधाई दे रहे हैं पर यदि उनके अंतर में झांके तो आवाज आती है
ये फूल क्या मुझको विरासत में मिले हैं।
तुमने मेरा काँटो भरा विस्तर नहीं देखा। डॉ. शेखरचंद जैन का बहुआयामी व्यक्तित्व है जिन्हें कुछ शब्दों में नहीं बांधा जा सकता है इन सब उपलब्धियों के साथ-साथ वे अत्यन्त विनम्र एवं मिष्ठभाषी हैं। उनको देखकर उनकी उपलब्धियों का अंदाजा । लगाना मुश्किल ही नहीं बल्कि असंभव है। इस बात को इस तरह भी कहा जा सकता है।
तुम कर न सकोगे उनके कद का अंदाजा।
वे आसमान हैं पर सिर झुकाये बैठे है॥ मैं उनके स्वस्थ एवं लम्बे जीवन की हृदय से कामना करता हूँ।
कपूरचन्द्र जैन एडवोकेट (ललितपुर)
. मेरे बड़े भैय्या ___ आज मुझे बड़ा गर्व हो रहा है कि परम पूज्यनीय श्री डॉ. शेखरचंद्रजी जैन अभिनंदन ग्रंथ-२००७ में अपनी
ओर से शुभकामना देने का सुअवर पाया है। ___ आप श्री अन्तरराष्ट्रीय विद्वान एवं प्रखर वक्ता हैं। जिनकी ख्याति देश-विदेशों में है। मेरा सौभाग्य है कि । आपश्री मेरे बड़े भ्राता हैं- इनका भ्रातृ प्रेम तो हम पर सदा बरसता रहा है, व बरस रहा है। परंतु इन्होंने हमें पितृ । प्रेम (पैतृक प्रेम) भी बेहद दिया है। हमने सदा इनसे कुछ पाया है। हमें सदैव आशीर्वाद व अपने स्नेह से अभिसिंचित किया है। आज में जो कुछ भी हूँ यह इनका आशीर्वाद है। मैं सदैव उनका ऋणी रहूँगा।
हम छोटे भाई उन्हें क्या दे सकते हैं? हम तो ईश्वर से यही प्रार्थना करते हैं कि वे इस ग्रंथ के बाद शतायुग्रंथ । प्रकाशित करें व मुझे पुनः उस ग्रंथ में शुभ कामना का सुअवसर प्राप्त हो।
अपने जीवन काल के दौरान स्वयं संघर्ष से जूझते रहे व हमे तनिक भी आंच न आने दी। आपने अपनी परवाह कभी भी नहीं की। आपने सदैव वक्ष की भांति हमें शीतल छाया देकर हमें उन्नति के मार्ग पर ला खडा किया है। जिससे हम सभी अपनी जिम्मेदारी निभा रहे हैं।
आपके इस अभिनंदन ग्रंथ एवं शादी की ५१वीं वर्षगांठ पर मेरी बहुत-बहुत शुभ कामना हैं एवं आप हमें हमेशा मार्गदर्शन देते रहें- ऐसी आशा के साथ..
पूज्यनीय-सम्मानीय विद्वान धर्मप्रेमी, न्याय नीतिवान, आप गुणों के भंडार हैं। वाणीभूषण, प्रवचनमणि, ज्ञानवारिधि हैं, विचार सागर के विशुद्ध दुनिया के पार हैं ॥ सरल, मृदुभाषी हैं, शिरोमणी सिद्धांत के हैं, सभी निवारण के ज्ञान गज पे सवार हैं। हमारे भाई को सराहे कैसे, हम पर आपके अपार उपकार हैं॥
डॉ. महेन्द्रकुमार जैन (भाई)