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आश्वासः ]
रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम्
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विद्रुमस्तत्पल्लवप्रभाभिघूर्णमान: संबध्यमानः स्वाश्रयः स्वनिष्ठो रङ्गो यत्र तत् । तल्लौहित्यसंक्रमात् । प्रशंसायां कन् । एवं रविणा सूर्येण राजितं दीपितम् । मन्दराकर्षणेन दूरं व्याप्य विदारितम् । तदुत्पाटनेन भूमेविदीर्णत्वादित्यर्थः ॥२६॥
विमला-तरङ्गों से युक्त, विद्रुमपल्लवों की प्रभा से शाश्वत प्रसरणशील रक्तिमा वाला, (रविराजितम् - रवविशिष्टा: रविणः हंसाः तैः राजितम्) हंसों से सुशोभित, (मथनकाल में) मन्दराचल के घूमने से दूर तक शब्दयुक्त जल वाला (दूर-विराबि-कम्) यह समुद्र उस धरणितल के समान सुशोभित है जो (राजा के द्वारा ग्राह्य) कर से युक्त अङ्ग वाला है, विशिष्ट द्रुम के पल्लवों की प्रभा से स्वनिष्ठ रक्तिमा वाला है (रविण सूर्येण राजितम्) सूर्य से सुशोभित एवं मन्दराचल के उत्पाटन से दूर तक विदीर्ण है।
विमर्श-धरणितल के पक्ष में 'सअरङ्गअं' की संस्कृतच्छाया 'सकराङ्गम्', 'सासअरङ्गअम्' की स्वाश्रयरङ्ग कम्', 'दूरविराइअम्' की 'दूरविदारितम्' है ।।२।।
मुत्ताल तिप्रसविइण्णजीविअसुहामअजम्मुत्तालग्नम् । विस्थिण्ण पल उज्वेलसलिलहेलामलिउवित्थिण्णम् ॥३०॥ [मुक्तालयं त्रिदशवितीर्णजीवितसुखामृतजन्मोत्तालकम् ।
विस्तीर्णकं प्रलयोद्वेलसलिलहेलामृदितोर्वीस्त्यानकम् ॥] मुक्तानां मौक्तिकानां जीवन्मुक्तानां वालयम् । त्रिदशेभ्यो वितीर्णं जीवितसुखं येन तादशस्यामृतस्य जन्मनोत्तालकमुद्भटम् । तथा च त्रिदशश्लाघ्यामृतस्याकरोऽयमित्यर्थः । एवं विस्तारशीलम् । प्रशंसायां कन् । विस्तीर्णजलं वा। एवं प्रलये उद्वेलमुच्छलितं यत्सलिलं तस्य हेलया संचारेण मृदितया उर्व्या स्त्यानं काठिण्यात्कर्दमीभूतम् । तथा च प्रलयहेतुत्वमस्येति सूचितम् ॥३०॥
विमला-यह समुद्र मुक्तालय (१-मौक्तिकों, २-जीवन्मुक्तों का आलय) है । देवों को जीवनसुख प्रदान करने वाले अमृत के जन्म से महान है। यह अत्यन्त विस्तारशील है तथा प्रलय में वेला का अतिक्रमण कर उमड़ कर बहे हुए जल के लीलापूर्वक संचार से क्षुण्ण मही से यह गाढ़ा हो गया है ॥३०॥
चिरपरूढसेआलसिलाहरिअन्तरं
पवणभिण्णरवदारुणणोहरिमन्तमम् । महुमहस्स णिद्दासमए वोसामर्थ
पलअडड्ढविज्झाअतलुव्वीसामग्रम् ॥३१॥
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