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सेतुबन्धम्
[ चतुर्दश
बहुत भारी लगा । उस समय रुधिर से अरुण राक्षससेना के समान ही लाली से युक्त सन्ध्यातिमिर दिखायी पड़ा ।।१४।।
अथ पुनर्मेघनादागमनमाह-
अह उग्गाहिप्रचाओ एक्को वालिसुअमोडितर हुप्पइओ । संचरइ मेहणात्र णित्र अच्छवि मेलिअन्धप्रारम्मि नहे ||१५|| [ अथोद्ग्राहितचाप एको वालिसुतमोटितरथोत्पतितः । संचरति मेघनादो निजकच्छविमेलितान्धकारे नभसि ॥ ]
अथ संध्यागमानन्तरमेको मेघनादो नभसि संचरति । कीदृशे । निजककान्त्या 'मिलितं श्यामत्वादेकीकृतमन्धकारं मायाकल्पितं यत्र तत्र । स कीदृक् । उद्ग्राहि उत्तोलितचापो येन तादृक् । एवम् -- वालिसुतेन मोटिताद्भग्नाद्रथादुत्पतितः । - कृतोत्फाल इत्यर्थः ॥ १५ ॥ ।
विमला- – सन्ध्या आगमन के अनन्तर मेघनाद ने धनुष उठा कर, अङ्गद के द्वारा भग्न किये गये रथ में ऊपर की ओर उछल कर आकाश में संचार किया, उस समय उसकी ( श्याम ) कान्ति और अन्धकार, दोनों मिलकर एकाकार हो गये ||१५||
अथ रामलक्ष्मणयोर्बन्धनोपक्रममाह
तो निट्ठविप्रणिसिअरा इन्दइणा गरुअवेर मूलाहारा । समअं चित्र सच्चविआ अद्दिट्ठेण विहिणेव्व दहरहतणआ || १६॥ [ ततो निष्ठापितनिशिचराविन्द्रजिता गुरुकवैरमूलाधारौ । सममेव सत्यापितावदृष्टेन विधिनेव दशरथतनयौ ॥ ]
तत आगमनानन्तरमदृष्टेनालक्षितेनेन्द्रजिता दशरथतनयौ सममेकदैव सत्यापितो नागपाशलक्ष्यत्वेन व्यवस्थापितौ । किंभूतेनेव । विधिनेव । विधिरदृष्टं विधाता वा तेनेव । तदायत्तत्त्वादित्युत्प्रेक्षा । तावप्यदृष्टावस्मदाद्यप्रत्यक्षौ भवतः । दशरथतनयो किभूतो । निष्ठापिता नाशिता निशिचरा याभ्यां तौ । अत एव खरादिनाशकत्वाद्गुरुकस्य वैरस्य मूलाधारौ ॥१६॥
विमला- - तदनन्तर राम और लक्ष्मण, जिन्होंने निशिचरों का विनाश किया था, अतएव जो महान् वैर के मूल आधार थे, अलक्षित मेघनाद के द्वारा क्या, मानों भाग्य के ही द्वारा नागपाश के लक्ष्य बनाये जाने के लिये निश्चित किये गये ॥ १६ ॥
अथ नागपाशत्यागमाह
मुअ अ सम्भु दिग्णे ताण भुअङ्गमुहणिग्गआणलजी हे । से सहिअरक्स वो सत्यपलम्बिओह अभप्राण सरे ॥ १७॥
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