Book Title: Setubandhmahakavyam
Author(s): Pravarsen, Ramnath Tripathi Shastri
Publisher: Krishnadas Academy Varanasi

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Page 658
________________ आश्वासः] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [६४१ अथ कपीनां पलायनमाह तो तं पेच्छन्त च्चिअ पच्छाहत्ता णिअत्तरणवावारा। हत्थपडन्तधराहरविसमक्कन्ता पडाइमा कइणिवहा ॥१५॥ [ ततस्तं पश्यन्त एब पश्चादभिमुखा निवृत्तरणव्यापाराः।। हस्तपतद्धरविषमाक्रान्ताः पलायिताः कपिनिवहाः ॥] ततः प्राकारलङ्घनानन्तरं तं कुम्भकर्णं पश्यन्त एव पश्चादभिमुखाः सन्तः कपिनिवहाः पलायिताः । किंभूताः । निवृत्तयुद्धव्यापाराः । एवम् हस्तात्पतद्धराधरेण विषममाकान्ता भीत्या सम्यग्धर्तमसामर्थ्येन यन्त्रिताः ॥१५॥ विमला-तदनन्तर उस ( कुम्भकर्ण) को देखते ही वानर हाथ से गिरते हुये पर्वत से बुरी तरह आक्रान्त होने के कारण युद्ध क्रिया बन्द कर मुंह मोड़ कर भाग चले ॥१५॥ अथामुष्य युद्धमाहअह सेलेहि तरूहि अफलिहेहि अ मोग्गरेहि हन्तूण दढम् । दढदण्डाउहमग्गणमुसलेहि खणेण वाणरबलं सअलम् ॥१६॥ तो पवआइ गआई तुरप्राइ अ रक्खसाइ लोहिममत्तो। रग्मसराघाअधुओ णिअअबले परबले पत्तो खत्तम् ॥१७॥ [अथ शैलैस्तरुभिश्च परिघेश्च मुद्गरैर्हत्वा 'दृढम् । दृढदण्डायुधमार्गणमुसलैः क्षणेन वानरबलं सकलम् ।। ततः प्लवगान्गजांस्तुरगांश्च राक्षसांल्लोहितमत्तः। रामशराघातधुतो निजकबले परबले प्रवृत्तः खादितुम् ॥] अथ कपिभङ्गोत्तरं शैलादिभिदं दं दण्डरूपमायुधं मार्गणो बाणो मुसलं चैतत्पर्यन्तै रस्त्रः क्षणेन सकलं वानरबलं दृढं यथा स्यात्तथा हत्वेति परस्कन्धकेन संदानितम् । स कुम्भकर्णो रामशराघातेन धुतः कम्पितः सन् क्रोधात् । निजकबले परबले च प्लवगादीन् खादितु भोक्तु प्रवृत्तः । एषामेव लोहित रुधिरैर्मत्तो यतः । युग्मकम् ।।१६-१७।। विमला-तदनन्तर शैल, वृक्ष, परिघ, मुद्गर, दृढ दण्डरूप आयुध, बाण, मुसल आदि से वानर सेना को अच्छी तरह मार कर वह (कुम्भकर्ण) राम के शरों के प्रहारों से कम्पित हो, अपनी सेना तथा शत्रुसेना में वानरों, गजों, घोड़ों तथा राक्षसों को, उन्हीं के रुधिर से मत्त होने के कारण खाने लगा ।।१६-१७॥ अथ कुम्भकर्णभुजच्छेदमाहचिरजुनिअस्स तो से दोएह वि रामधणुणिग्गअसराहिहा। पढमं धरणी भुआ पच्छा छेअरुहिरोज्झरा पल्हत्था ॥१८॥ ४१ से० ब० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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