Book Title: Setubandhmahakavyam
Author(s): Pravarsen, Ramnath Tripathi Shastri
Publisher: Krishnadas Academy Varanasi

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Page 678
________________ माश्वासः ] रामसेतुप्रदीप - विमलासमन्वितम् [ ६६१ विमला - संग्राम में ( सहसा ) सेना के पड़े और वे वानरों की सेना के उन्मूलन में अकस्मात् बाण छोड़े जाने से सब घबड़ा गये, अतएव ) रामादि की परस्पर चल रही बात चीत रावण के द्वारा विघटित कर दी गयी ॥६२॥ अग्रभाग पर प्रवृत्त हो गये । रावण के बाण आ ( रावण के द्वारा अथ रामरावणयोर्युद्धमाह तो दोन्हवि समसारं बाणवह फिडिप्रतिअसपेक्खिज्जन्तम् । एक्कअरमरणगरुअं जाअं रामस्स वहमुहस्स अ जज्झम् ||६३॥ [ ततो द्वयोरपि समसारं बाणपथस्फेटितत्रिदशप्रेक्ष्यमाणम् । एकतरमरणगुरुकं जातं रामस्य दशमुखस्य च युद्धम् ॥ ] ततो रावणशरपातानन्तरं रामस्य दशमुखस्य च द्वयोरपि युद्धं जातम् । रामेण रावणः प्रतीष्ट इत्यर्थः । किंभूतम् । समसारं समबलम् । एवम् — बाणपथस्फेटितबाणपातभिया बहिर्भूतस्थिता ये त्रिदशास्तैः प्रेक्ष्यमाणम् । आकाशादित्यर्थात् । एवम् — एकतरस्य मरणेन गुरुकं सातिशयम् ॥ ६३ ॥ विमला - रावण के बाणों के छूटते ही राम और रावण का वह महान् युद्ध प्रारम्भ हो गया, जिसमें दोनों के समबल होने से दो में से एक का मरण होने पर ही समाप्त होने की आशा की जा सकती थी, अतएव देवता लोग बाणों के पथ से दूर हट कर संग्राम देखने लगे ॥६३॥ अथ रामोरसि बाण प्रहारमाह तो कढिऊण चावं कुण्डलमणि किरणघडिअजी आबन्धम् । मुक्को रामस्स उरे पढमं हअबन्धुणा दहमुहेण सरो ॥ ६४ ॥ [ ततः कृष्ट्वा चापं कुण्डलमणिकिरणघटितज्याबन्धम् । मुक्तो रामस्योरसि प्रथमं हतबन्धुना दशमुखेन शरः ॥ ] ततो युद्धारम्भानन्तरं यतो हतसकलपुत्र भ्रातादिबन्धुनात एव पीडितत्वात्प्रथमं दशमुखेन रामस्योरसि शरो मुक्तः । किं कृत्वा । कुण्डलमणिकिरणैर्घटितः संबद्धो ज्याबन्धो यत्र तद्यथा स्यादेवं चापं कृष्ट्वा । आकर्णमित्यर्थः । चापविशेषणं वा कुण्डलेत्यादि ॥ ६४ ॥ विमला - तदनन्तर रावण ने धनुष पर बाण रख कर धनुष को इतना ( कान तक ) खींचा कि उसकी डोरी कुण्डलमणि की किरणों से युक्त हो गयी और राम के हृदय को लक्ष्य बना कर बाण छोड़ दिया ।। ६४॥ अथ रामक्षोभमाह -- अपडिएण तेण सह धीरो वि परिकम्पिश्रो रहणाहो । अप्पाणणिग्विसेसं सम्रलं जह णेण कम्पिअं तेल्लोक्कम् ॥ ६५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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