Book Title: Setubandhmahakavyam
Author(s): Pravarsen, Ramnath Tripathi Shastri
Publisher: Krishnadas Academy Varanasi
________________
श्लोकानुक्रमणिका
६८१
श्लोकांशाः
अहवा अंकअकज्जो अह वामभुअप्फालण अह वेएण पवंगा अह समरन्तरिअसुहो अह सरबन्धविमुक्के अह सरबन्धविमुक्को भह ससिजणिआमोए अह सेलेसहि तरूहि अ अह हिअमच्छरलहुआ अहिआणं तोसहरे अहिणवणिद्धालोआ अहिणवराआरद्धा अहिधावन्तपवङ्ग अहिलीअ परमुहीहिं अहिसारणं ण गेल्इ
८८
--
संस्कृतरूपा० आश्वा• श्लोका० पृष्ठाङ्काः अथवाऽयं कृतकार्यो १४ अथ वामभुजास्फालन ५ २२ १५७ अथ वेगेन प्लवङ्गा अथ समरान्तरितसुखो
५१२ अथ शरबन्धविमुक्तो
६२४ अथ शरबन्धविमुक्तो अथ शशिजनितामोदे
४२२ अथ शैलैस्तरुभिश्च
६४१ अथ हृतमत्सरलघुका अहितानां तोषहरे अभिनवस्निग्धालोका
१८ अभिनवराजारब्धा अभिधावत्प्लवङ्ग अभिलीय पराङ्मुखीभिः २ अभिसारणं न गृह्णाति १०
आ आकर्णकृष्टेन च
१५ २० ६४२ आताम्ररविकराहत आदिवराहेणाऽपि
१६८ आपृच्छयमानगृहीताः आपूरयति रसन्
१७३ आरब्धाश्च तुलयितु आबद्धबन्धुवरं यन् आमुञ्चति महति ११८ आमोचिपातालो यस्य
३८२ आरभ्यमाणे सकल
३२४ आरोहतीव दिवसमुखे
३७७ आरूढोदधिसलिला
३५२ आरूढो निरैति रथ
५४१ आलीनश्च रघुपति
१६२ आलोकिता न दृष्टाः
२४१
४२५
F
आअण्णकड् ढिएण अ माअम्बरविअराहम आइवराहेण वि जे आउच्छमाणगहिआ आऊरेइ रसन्तो आढत्ता अ तुले आबद्धबन्धुवेरं जं आमुअइ महइ सअणं आमोइअपाआलो जस्स आरम्भन्ते सअलो आरुहइ व दिवसमुहे आरूढोअहिसलिले आरूढो णीइ रहं आलीणो अ रहुवई आलोइआ ण दिट्ठा
م
له
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Page Navigation
1 ... 696 697 698 699 700 701 702 703 704 705 706 707 708 709 710 711 712 713 714 715 716 717 718 719 720 721 722 723 724 725 726 727 728 729 730 731 732 733 734 735 736 737 738