Book Title: Setubandhmahakavyam
Author(s): Pravarsen, Ramnath Tripathi Shastri
Publisher: Krishnadas Academy Varanasi

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Page 702
________________ श्लोकानुक्रमणिका ६८५ संस्कृतरूपा० - आश्वा० श्लोका० पृष्ठाङ्काः १०९ २८३ ا س م 305 ش س १११ م س २२ श्लोकांशाः ओ जमलक्खम्भेहिं ओज्झरमज्जणसुहि ओधूसरिअधअवडो ओभग्गरक्खसदुमं ओलुग्गप्फरिसाणं ओवअणोसुद्धरहं ओवइआ असरहसं ओवग्गइ अहिमाणं ओवग्गउ तुम्ह जसो ओवट्ठकोमलाई ओ विरएमि णहअले ओ ससिकराहनुम्मिल ओ साअरोअरन्भन्त ओसुम्मन्तजलहरं उत युगलस्तम्भाभ्या निर्झरमज्जनसुखिता अवधूसरितध्वजपट: उत भग्नराक्षसद्रुमां अवरुग्णस्पर्शानां अवपतनावपातित अवपतिताश्च सरभसं अवक्रामत्यभिमानं अवक्रामतु युष्माकं अववर्षकोमलानि उत विरचयामि उत शशिकराहतो उत सागरोदराभ्यन्त अवपात्यमानजलधरं mx 19 Nur ० mr ८ م M २०४ ४ २९ १२८ ३ ११८२ २५ ३५२ २४ ४४८. م م م ه » س س س س २१ ५६० ५२१ ت २ م م कअकज्जे तालसमे कइआ णु विरहविर कइमुक्कचुण्णिअट्ठि कइवच्छत्थलपरिणअ कइवररसुद्धाइ कअपरिपेल्लिाणं कडअवलन्तरविरह कढिअमूलणिरन्तर कड्ढिज्जन्ति समन्ता कण्टइअणू मिअङ्गी कमलाण दिअसविगमे कम्पइ महेन्दसेलो कम्पिज्जन्तधराहर करवारिकइलोओ करिमअराण खुहिम कसणमणिच्छाआ कृतकार्यास्ताल कदा नु विरहविर कपिमुक्तचूणिनस्थित कपिवक्षःस्थलपरिणत कपिवररभसोद्धावित कटकप्रतिप्रेरितानां कटकवलद्रविरथं कृष्टमूलनिरन्तर कृष्यन्ते समन्ताद् कण्टकितगोपिताङ्गी कमलानां दिवसविगमे कम्पते महेन्द्र शैलो कम्प्यमानधराधर करवारितकपिलोकः करिमकराणां क्षुभित कृपणमणिच्छाया م م ३५८ २२१ २१८ م २६ م م १. ११ ३९८ २०१ ६ ३८ २१० १२१ ३१४ २ २८६६ ه १८ ه Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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