Book Title: Setubandhmahakavyam
Author(s): Pravarsen, Ramnath Tripathi Shastri
Publisher: Krishnadas Academy Varanasi

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Page 652
________________ पञ्चदश आश्वासः अथ रावणस्य प्रयाणमाहअह णिहअस्मि पहत्थे बन्धुवहामरिसणिन्तबाहुप्पीडो। चलिओ सिहिपच्चग्गअहंकारभरेन्तवसदिसो बहवअणो ।। १॥ [अथ निहते प्रहस्ते बन्धुवधामर्षनिर्यद्बाष्पोत्पीडः । चलितः शिखिप्रत्युद्गतहुँकारभ्रियमाणदशदिग्दशवदनः ॥] अथ शिलापतनानन्तरं प्रहस्ते निहते सति दशवदनश्चलितः । रणायेत्यर्थात् । कीदृक । बन्धूनां वधेनामर्षान्निर्यन्बहिर्गच्छन्बाष्पोत्पीडो यस्य सः । इति यात्रासमये रोदनादमङ्गलमुक्तम् । पुनः कीदृक् । शिखिना वह्निना प्रत्युद्गतः संगतः क्रोधशोकहेतुकत्वाद्यो हुंकारस्तेन गम्भीरतया भ्रियमाणाः पूर्यमाणा दश दिशो येन स तथा ॥१॥ विमला-नील द्वारा शिलापात से प्रहस्त के मारे जाने पर बन्धुओं के वध से उत्पन्न अमर्ष के कारण अश्रुधारा बहाता, ( क्रोध-शोक के ) अनल से मिश्रित हुंकार के दसों दिशाओं को भरता हुआ रावण युद्ध के लिए चल पड़ा ॥१॥ अर्थतस्य हास्यमाहतह कुविएण पहसिकं करालमुहकन्दराभरेन्तदशदिशम् । जह से भअतुहिक्को भवणक्खम्भेसु परिमणो वि णिलुक्को ॥२॥ [ ततः कुपितेन प्रहसितं करालसुखकन्दराघ्रियमाणदशदिशम् । यथास्य भयतूष्णीको भवनस्तम्भेषु परिजनोऽपि निलुकितः॥] करालानि व्याप्तस्वात्सच्छिद्राणि मुखान्येव कन्दरास्ताभिभ्रियमाणाः पूर्यमाणा दश दिशो यत्र तयात्तदशमुखव्याप्तदशदिग्यथा स्यादेवं कुपितेन रावणेन तथा प्रहसितं हास्यं कृतं यथा भयेन तुष्णीको मौनी अस्य रावणस्य परिजनोऽपि भवनस्तम्भेषु निलुकितः । निलीन इत्यर्थः । ऋद्धस्य दृष्टिपथो वर्जनीय इत्याशयादितिः भावः ॥२॥ विमला-तदनन्तर कुपित रावण अपने बाये हुए मुखरूप कन्दराओं से दसों दिशाओं को व्याप्त कर ऐसा जोर से हंसा कि उसके परिजन भी भय से. मौन हो घर के खम्भों की आड़ में छिप गये ॥२॥ अर्थतस्य रथारोहणमाह तो रक्खसपरिवारं णिपामभरोणमन्तपछिमतस्मिम् । सारहिणा सामन्तं चलतरङ्गमष रहं आरूढो॥३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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