Book Title: Setubandhmahakavyam
Author(s): Pravarsen, Ramnath Tripathi Shastri
Publisher: Krishnadas Academy Varanasi

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Page 636
________________ आश्वासः] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम् [६१६ विमला-तदनन्तर सुग्रीव का मुख तीव्र रोष से अतिक्रान्त, अतएव कम्पित हो गया और आँसू को बड़ी कठिनाई से रोक सका, अतएव राम को विना उत्तर दिये उसने वानरों से ( वक्ष्यमाण वचन ) कहा ।।४६।। बच्चह लक्खणसहिणवपल्लवरइअवीरसअणत्थरणम् । पावेह वाणर उरि अविहाविबाणवे प्रणं रहुणाहम् ॥५०॥ [व्रजत लक्ष्मणसहितं नवपल्लवरचितवीरशयनास्तरणम् । प्रापयता वानरपुरीमविभावितबाणवेदनं रघुनाथम् । ] हे वानराः ! यूयं व्रजत । लक्ष्मणसहितं रघुनाथं वानरपुरी किष्किन्धां प्रापयत । किंभूतम् । नवपल्लव रचितं वीरशयने आस्तरणं यस्य तम् । अत एवाविभावितापरिज्ञाता बाणवेदना यत्र तद्यथा स्यादिति क्रियाविशेषणम् । नवपल्लवादिकोमलोपचारेण बाणवेदना परिहर्तव्येति भावः ।।५०॥ विमला-वानरों ! तुम सब लक्ष्मणसहित रघुनाथ को किष्किन्धापुरी पहुंचा दो और वहाँ वीरशय्या पर नव-( कोमल )-पल्लव बिछा कर उनकी बाण वेदना दूर करो ॥५॥ अह पि विज्जपडणाइरित्तसंपाअगहिमपविद्धधणम् । प्रद्धोहरिआसाइअवलि अभुअक्खित्तमोडिअगाविहलम् ॥५१॥ खन्धद्धन्तोवाहिअकरजुअलोलुग्गचन्वहासक्खग्गम् अक्कतचलणताडिअदलिअरहाहोमुहोसरन्तपहरणम् ॥५२॥ भग्गपुरिल्लविसंठुलभु अजुअलुक्खुडिनसेसणिप्फल बाहुम् । वज्जणिहहरणिवन्तविण्णवढमुट्ठिभिण्णवच्छवन्तम् ॥५३।। भअणिमवालिअड्ढिाडि अक्केक्कविसरन्तपब्बिद्धसिरम् । णिप्फलसोप्रासंधिमणक्खुक्खुडिअहिअरं करेमि दहमुहम् ॥५४॥ ( अन्त्यकुलअम् [ अहमपि विद्युत्पतनातिरिक्तसंपातगृहीतप्रवृद्धधनुषम् । अर्धावहृतासादितवलितभुजाक्षिप्तमोटितगदाविह्वलम् ।। स्कन्धार्धान्तापवाहितकरयुगलावरुग्णचन्द्रहासखड्गम् । आक्रान्तचरणताडितदलितरथाधोमुखापसरत्प्रहरणम् ॥ भग्नपुरोगविसंष्ठुलभुजयुगलोत्खण्डितशेषनिष्फलबाहुम् । वज्रनिभहस्तनिपतहत्तदृढमुष्टिभिन्नवक्षोर्धान्तम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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