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आश्वासः ]
रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम्
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भी अधिक वेग से ऊपर की ओर उछल कर उसके विशाल धनुष को ग्रहण करूंगा। मेरे द्वारा धनुष छीने जाने पर वह मेरे ऊपर अर्धभाग से गदा गिरायेगा तो मैं उसकी गदा हाथ से पकड़ लूंगा और उसकी भुजा को ऐंठ कर उससे गदा छीन कर तोड़ डालूंगा, एवं वह विह्वल हो जायगा। गदा तोड़ देने पर वह मेरे अर्धस्कन्ध प्रदेश पर खड्ग से वार करेगा तो उसके चन्द्रहास नामक खड्ग को हाथ से पकड़ कर तोड़ दूंगा। उसके रथ को आक्रान्त कर चरणप्रहारों से तोड़ दूंगा, अतएव उससे भी उसके अस्त्र अधोमुख हो गिर जायँगे। भुजयुगल से मैं उसकी आगे की दस भुजाओं को भग्न करके पीछे वाली निष्फल दस भुजाओं को भी उखाड़ फेकूँगा एवं वज्रसदृश अपने हाथ की मूंठ से उसके वक्ष को विदीर्ण करूंगा। उसके बड़े बड़े एक-एक सिर को भुजाओं से पकड़-पकड़, खींच-खींच कर खण्डित कर पृथिवी पर गिरा दूंगा, तदनन्तर सीता में व्यर्थ आसक्त उसके हृदय को नखों से निकाल बाहर करूंगा ।।५१-५४॥
इअ अज्जं चेअमए णिहअम्मि दसाणणे णिआ किक्किन्धम् । अणुमरिहिइ व मरन्तं वच्छिहि व जिअन्तराहवं जणअसुआ॥५५॥ [ इत्यद्यैव मया निहते दशानने नीता किष्किन्धाम् ।
अनुमरिष्यति वा नियमाणं द्रक्ष्यति वा जीवद्राघवं जनकसुता ॥] इत्यनेन प्रकारेणाद्यैव वा मया दशानने निहते सति किष्किन्धां नीता सती जनकसुता जीवन्तं राघवं द्रक्ष्यति वा। अथ तथाभूतमेव म्रियमाणमनुमरिष्यति वा । तथा च--इतः सीताया नयने रामस्य जीवने मरणे वा पक्षद्वयेऽपि सीतालाभ इत्युभयथापि मम प्रत्युपकारसिद्धिः स्यादथ नयनं न चेत्तदा कस्यामपि दशायां तस्य तल्लाभो न स्यादिति महदनिष्टम् ।।५।।
विमला-इस प्रकार मेरे द्वारा आज ही रावण के निहत होने पर सीता या तो किष्किन्धा पहुँचकर जीवित राम को देखेंगीअथवा उनके मर जाने पर वे ( सीता ) भी मर जायेंगी ॥५५॥ अथ रामस्य गरुडाह्वानमाहविसहरबाण त्ति इमे विहीसणेण विणिवारिए सुग्गीए । प्राढत्तो चिन्तेउ मन्तं हिपएण गारुडं रहुणाहो ॥५६॥ [ विषधरबाणा इतीमे विभीषणेन विनिवारिते सुग्रीवे ।
आरब्धश्चिन्तयितु मन्त्रं हृदयेन गारुडं रघुनाथः ॥] इमे विषधराः सास्तद्रूपा बाणास्तथा च किं करिष्यन्तीति कृत्वा विभीषणेन सुग्रीवे विनिवारिते सति । राघवयोः किष्किन्धां प्रेषणादित्यर्थात् । रघुनाथो रामस्तत्प्रतिकाराय गारुडं मन्त्रं हृदयेन चिन्तयितुमारब्धः ॥५६।।
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