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सेतुबन्धम्
[ त्रयोदश
विमला - विद्युन्माली ( रजनीचर ) चिरयुद्ध से हर्षित हुआ तो सुषेण ( सुग्रीव का ससुर और वानरवैद्य ) ने कुपित होकर उसकी परिघ - ( लोहदण्ड ) - तुल्य भुजाओं को दोनों पैरों से पृथिवी पर दबा कर नखों से चीर-फाड़ कर अलग फेंक दिया ॥ ८४ ॥
नलतपनयोस्तदाह
सहिअपहरं णलेण वि तवणस्स तलाहिघाअमोडिकण्ठम् । मिहिअ देहम्मि सिरं देहो प्रद्धणिमिओ महिअलम्मि कओ ॥८५॥ [ सोढप्रहारं नलेनापि तपनस्य तलाभिघातमोटितकण्ठम् ।
निहितं देहे शिरो देहोऽर्धनिवेशितो महीतले कृतः ॥ ]
नापि तपनस्य रक्षसः शिरः कर्म तलाभिघातेन चपेटप्रहारेण मोटितकण्ठ सनिहितं स्थापितम् । तथा चपेटप्रहारः कृतो यथा तदीयं शिरस्तदीयकबन्ध एव प्रविष्टमित्यर्थः । सोढप्रहारं यथा स्यात्तपनकृतप्रहारं सोवेत्यर्थः । न केवलं शिर एव तथा कृतम् । अपि तु तदीयदेहोऽपि महीतलेऽर्ध निवेशितः कृतः तथा च एकेनैव प्रहारेण शिरः कबन्धे प्रविष्टम्, कबन्धोऽप्यर्धेन भूमौ प्रविष्ट इत्यर्थः ॥८५॥
विमला---नल ने भी तपन ( रजनीचर ) के किये गये प्रहार को सह लिया और चपेटे के एक ही प्रहार से उसके सिर को उसके देह में घुसेड़ दिया एवं शरीर भी भूतल में आधा निविष्ट कर दिया ||८५||
हनुमज्जम्बुमालिनोस्तदाह
हन्तूण जम्बुमालि झत्ति विहिणो विओपवण्णसुप्रो । सअलतलगाढताडण भिण्णुच्छ लिअ सिर मेअसित्तदसदिसम् ॥८६॥ [ हत्वा जम्बुमालिनं झटिति विभिन्नोऽतिक्रान्तः पवनसुतः । सकलतलगाढताडनभिन्नोच्छलितशिरोमेदः सिक्त दशदिक ॥ ]
पवनसुतो जम्बुमालिनं हत्वा झटिति विभिन्नस्तस्मादेव राक्षसात्पृथग्भूतः सन्नतिक्रान्तो दूरं गतः । कीदृक् । सकलतलेन संपूर्णचपेटेन गाढताडनाद्भिन्नः स्फुटितैरथोच्छलितैः शिरोमेदोभिः सिक्ता दशदिशो तेन स तथा । [ चन्द्रिकायां] तलताडनेन यावच्छिरोमेदः समुच्छलति तावदेव तत्संपर्कभिया दूरमुत्प्लुत्य गत इति वेगोत्कर्ष उक्तः ॥ ८३॥
विमला - पवनसुत ने जम्बुमाली ( राक्षस ) को ऐसा चपेट मारा कि प्रबल प्रहार से उसका सिर फूट गया और सिर की चर्बी ( गूदा ) उछल कर बाहर free आयी, अतएव उसके सम्पर्क से बचने के लिये वे ( हनुमान् ) फुर्ती से उस राक्षस से अलग हो दूर हट गये ||१६||
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