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सेतुबन्धम्
[ त्रयोदश
का युद्ध उत्कर्ष की सीमा पर पहुँच कर भी उत्तरोत्तर उत्कृष्ट होता
गया ।।६२ - ६८ ।।
अथेन्द्रजित्पराजयेनाश्वासं विच्छिनत्ति
अह इन्दइम्मि वालितणएण
समराणुराश्रभग्गुच्छाहे । हिश्रोत्ति हसन्ति कई माआइ ठिअ त्ति हरिसिआ रअणिमरा ॥६६॥ इअ सिरिपवरसेणविरइए कालिदासकए दहमुहवहे महाकव्वे तेरहो आससओ ।
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[ अथेन्द्रजिति
वालितनयेन
समरानुरागभग्नोत्साहे । निहत इति हसन्ति कपयो मायया स्थित इति हर्षिता रजनीचराः ॥ इति श्रीप्रवरसेन विरचिते कालिदासकृते दशमुखवधे महाकाव्ये त्रयोदश आश्वास: ।
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अथ द्वन्द्वयुद्धानन्तरं वालितनयेनेन्द्रजिति समरानुरागे भग्न उत्साहो यस्थ तथाभूते सति तिरोभवन्निन्द्रजिन्निहतो मृत इति कृत्वा कपयो हसन्ति, मायय स्थित इति कृत्वा रजनीचरा हर्षिताः । तत्त्वज्ञत्वादिति भावः ॥ ६६ ॥ द्वन्द्वसंग्रामदशया रामदासप्रकाशिता । रामसेतुप्रदीपस्य शिखा पूर्णा त्रयोदशी ||
विमा द्वन्द्व युद्ध के अनन्तर वालितनय ( अङ्गद ) के द्वारा जब इन्द्रजि समरानुराग के प्रति हतोत्साह कर दिया गया तब वह ( इन्द्रजित ) तिरोहि हो गया और 'अङ्ग द के द्वारा मारा गया' ऐसा समझ कर वानर ( प्रसन्नता से हँसे एवं राक्षस भी ( वास्तविकता जानने से ) 'वह ( इन्द्रजित ) माया ( कपट से अन्तर्हित है' इस आशय से प्रसन्न हुये ॥ ६६ ॥
इस प्रकार श्री प्रवरसेन विरचित कालिदासकृत दशमुखवध - महाकाव्य में त्रयोदश आश्वास की 'विमला ' हिन्दी व्याख्या पूर्ण हुई ।
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