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________________ ५६६ ] सेतुबन्धम् [ त्रयोदश का युद्ध उत्कर्ष की सीमा पर पहुँच कर भी उत्तरोत्तर उत्कृष्ट होता गया ।।६२ - ६८ ।। अथेन्द्रजित्पराजयेनाश्वासं विच्छिनत्ति अह इन्दइम्मि वालितणएण समराणुराश्रभग्गुच्छाहे । हिश्रोत्ति हसन्ति कई माआइ ठिअ त्ति हरिसिआ रअणिमरा ॥६६॥ इअ सिरिपवरसेणविरइए कालिदासकए दहमुहवहे महाकव्वे तेरहो आससओ । -**** [ अथेन्द्रजिति वालितनयेन समरानुरागभग्नोत्साहे । निहत इति हसन्ति कपयो मायया स्थित इति हर्षिता रजनीचराः ॥ इति श्रीप्रवरसेन विरचिते कालिदासकृते दशमुखवधे महाकाव्ये त्रयोदश आश्वास: । ***** अथ द्वन्द्वयुद्धानन्तरं वालितनयेनेन्द्रजिति समरानुरागे भग्न उत्साहो यस्थ तथाभूते सति तिरोभवन्निन्द्रजिन्निहतो मृत इति कृत्वा कपयो हसन्ति, मायय स्थित इति कृत्वा रजनीचरा हर्षिताः । तत्त्वज्ञत्वादिति भावः ॥ ६६ ॥ द्वन्द्वसंग्रामदशया रामदासप्रकाशिता । रामसेतुप्रदीपस्य शिखा पूर्णा त्रयोदशी || विमा द्वन्द्व युद्ध के अनन्तर वालितनय ( अङ्गद ) के द्वारा जब इन्द्रजि समरानुराग के प्रति हतोत्साह कर दिया गया तब वह ( इन्द्रजित ) तिरोहि हो गया और 'अङ्ग द के द्वारा मारा गया' ऐसा समझ कर वानर ( प्रसन्नता से हँसे एवं राक्षस भी ( वास्तविकता जानने से ) 'वह ( इन्द्रजित ) माया ( कपट से अन्तर्हित है' इस आशय से प्रसन्न हुये ॥ ६६ ॥ इस प्रकार श्री प्रवरसेन विरचित कालिदासकृत दशमुखवध - महाकाव्य में त्रयोदश आश्वास की 'विमला ' हिन्दी व्याख्या पूर्ण हुई । -***** Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001887
Book TitleSetubandhmahakavyam
Original Sutra AuthorPravarsen
AuthorRamnath Tripathi Shastri
PublisherKrishnadas Academy Varanasi
Publication Year2002
Total Pages738
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Story, & Literature
File Size13 MB
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