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सेतुबन्धम्
[ एकादश
साध्यवसाये ततो मया रामे सर्वथा विक्रम्य निहते सीता वशीकर्तव्येति परिसंस्थापिते स्थिरीकृते पश्चाद्वालिखरादिविनाशजलधिलङ्घनादिस्मृत्या रामस्यातिबलत्वज्ञानाद्भिद्यमानेऽध्यवसायं त्यजतीत्यर्थः । अत एव विषमं यथा स्यात्तयोद्भावित उद्गतः कम्पो यत्र । चिन्तावेगादिति धेर्यरूपभावशान्तिः ।। ५ ।।
विमला - ( मनुष्य रूप में राम बड़ा बलवान है, यह सोच कर ) रावण का हृदय भग्न ( अध्यवसायशून्य ) हो जाता और तुरन्त ही ( विष्णुरूप में वह मेरा कुछ न बिगाड़ सका तो मनुष्यरूप से क्या कर सकेगा, यह सोच कर ) निवृत्त ( साध्यवसाय ) हो जाता । तदनन्तर ( राम को मारने के बाद सीता को वश में कर ही लूंगा, यह सोच कर ) सुस्थिर हो जाता, किन्तु ( राम के द्वारा वालि एवं खरादि निशाचरों का संहार तथा समुद्र-लङ्घन आदि का स्मरण कर ) बुरी तरह काँप जाता, इस प्रकार उसके गम्भीर हृदय में रोकने पर भी धैर्य ( बाहर निकलने के लिये ) चञ्चल हो जाता था || ५||
विषादरूपभावोदय माह
तो से विसमुष्वत्तिअविरल पसारिक रङ्गुलिदरत्थइअम् । खलिअं अंसम्मि मुहं विअम्मिआआसगलिअवाहुप्पीडम् ॥ ६ ॥ [ ततोऽस्य विषमोद्वर्तितविरलप्रसारितकराङ्गुलिदरस्थगितम् ।
स्खलित मंसे मुखं विजृम्भितायासगलितबाष्पोत्पीडम् ॥ ] ततो धैर्यत्यागानन्तरमस्यांसे मुखं स्खलितं संबद्धम् । किंभूतम् । चिन्तासौष्ठवेन विषमं विसदृशं यथा स्यादेवमुद्वर्तितोत्तानीकृता । अथ च विरलं प्रसारिता याः कराङ्गल्यस्ताभिरीषत्स्थगितमवष्टब्धम् । चिन्तावशात्करावष्टम्भेन स्कन्धे मुखं स्थापितमित्यर्थः ः । एवं विजृम्भितेन वर्धितेनायासेनोद्वेगेन गलितो वाष्पोत्पीडो यस्मादिति रोदनमुक्तम् । 'उपायाभावजन्मा तु विषादः सत्त्वसंक्षयः । निश्वासोच्छ्वासहृत्तापसहायान्वेषणादिकृत् ||६||
विमला — धैर्य छूट जाने के बाद ( चिन्ता से ) रावण का सिर ( झुक कर ) कन्धे पर स्थित हुआ, जिसे वह हाथ की विषमरूप से उत्तान की गयी तथा विरलरूप से प्रसारित की गयी अङ्गुलियों से थामे रहा एवम् उद्वेग बढ जाने से नेत्रों से अश्रुधारा बहने लगी ॥६॥ विषयनिवृत्तिमाहविसमुग्गा हिश्रमहुरं
दृमिश्रदन्तव्वणाहरपरिक्वलिअम् ।
श्राअण्णेइ पिआणं वलन्तहिअभावहोरिअं जनसद्दम् ॥ ७ ॥
[ विषमोद्ग्राहितमधुरं
दूनदन्तव्रणाधरपरिस्खलितम् । कर्णयति प्रियाणां वलमान हृदयावधीरितं जयशब्दम् ॥ ]
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