________________
५०० ]
सेतुबन्धम्
[ एकादश
उत्पन्न इत्यर्थः । एवं गतेन शोकेन विषदमानन्दजत्वादनुष्णम् । एवं दूरमुन्नामिती पयोधरौ यत्रेत्यपि द्वयं क्रियाविशेषणम् । तथा च ' दीहं पि समूससिअम्' इति पूर्वोक्तशोकहेतुक निश्वासापेक्षयाप्यानन्दहे तुक निःश्वासस्य महत्त्ववर्णनेन शोकोत्तरकालीनत्वादानन्दस्य शोकापेक्षयाप्युत्कर्षः सूचितः ॥ १३५ ॥
विमला - तदनन्तर सीता ने शोक त्याग कर ( हर्षजन्य ) शीतल निःश्वास किया, जिससे उनके पयोधर उस समय अत्यन्त उन्नत हो उठे और त्रिजटाकृत बहुविध समाश्वासन से सीता के लौटते जीवन की आशा त्रिजटादिक को भी हो गयी ।। १३५ ।।
अथ पुनः सीताया विरहदुःखोत्पत्तिमाह
तो आसासिअसुहिए तीए पुणरुत्तसच्चविअवीसत्थे । विनिवेहम्यभए पुणो वि संघढइ विरहदुक्खं हिमए ।। १३६ ।। [ तत आश्वासित सुखिते तस्याः पुनरुत्तः सत्यापित विश्वस्ते | विघटित वैधव्यभये पुनरपि संघटते विरहदुःखं हृदये ॥ ]
ततो रामसत्ता निश्चयेन जीवधारणोत्तरं तस्या हृदये विरहदुःखं पुनरपि संघटने लगतीत्यर्थः । अन्तर। शिरोदर्शनेन विरुद्धबीभत्सादिरसोत्पत्त्या जागरूक स्थापि विप्रलम्भस्य विच्छेदादिति भावः । किंभूते । प्रथमं त्रिजटावचसाश्वासिते सति सुखिते । अथ रामसत्ताया रूपकार्थतया पुनरुवतेन प्लवगकोलाहलादिना यत्सत्यापितं रामोऽस्तीति स्थितिकरणम् । भावे क्तः । तेन विश्वस्ते प्रमाण संभवेन विशेषेणाश्वस्ते | अत एव विगलितं वैधव्यभयं यत्र तथाभूते ॥ १३६ ॥
विमला - राम के जीवित होने का निश्चय होने से जीवन धारण करने के पश्चात् सीता के हृदय, जो प्रथम ( त्रिजटा के वचन से ) आश्वस्त एवं सुखित हुआ, पुनरुक्त वानरों के कोलाहलादि द्वारा सत्यापन किये जासे से विश्वस्त हुआ एवं जिसमें वैधव्य का भय नष्ट हो गया - में विरह का दुःख पुनः अनुभूत होने लगा ।। १६६।।
अथ सीतायास्त्रिजटानुरागकथनमुखेनाश्वासकं विच्छिनत्तिमाआमोहम्मि गए सुए प्र पवआण समरसंणाहरवे । जनमतणना दिट्ठ तिअडाणे हाणुरामभणिअस्स फलम् ॥१३७॥ इअं सिरिपवरसेणविरइए कालिदासकए दहमुहवहे महाकव्वे एआरहो आसासओ ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org