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सेतुबन्धम्
[ त्रयोदश
यत्र ।
समर्थे: संस्थापनाय माभैरित्यादि समाश्वासनवाक्येनार्जितं रणे यशो यत्र । एवं रणाय परानाश्वासयामास तेनैव यशो लब्धमित्यर्थः । यद्वा - वितिष्ठमानैः प्रधावितानां पलायितानां समस्तानां संस्थापनायेत्यन्वयः । किंभूतं सैन्यम् । वानरैः पराङ्मुखीकृत्यावनामिता:, अत एवार्धमोटितं ललाटपट्ट येषां तथाभूता निशिचरा तत्पलायनादन्यतो मुखानां निशाचराणां पृष्ठतो गत्वा कपिभिर्धृतस्य शिरसः स्वाभिमुखीकरणाय यदावर्तनं तत्प्रतिबन्धादेव ललाटस्यार्धमोटितत्वमित्यर्थः । एवम् - जयोत्साहजनितेन वानरसैन्यकलकलेनोद्विग्नेभ्यस्त्रस्तेभ्यस्तत एव प्रतिनिवर्तमानेभ्यः पलायमानेभ्यो गजेभ्यो विलोलाश्चञ्चलाः । पतिता इति यावत् । आरोहा हस्तिपका यत्र । गजानामुद्वृत्तगत्या हस्तिपकानां पतनमित्यर्थः । एवम् — चलैर्वानरैरनुधाविताः पृष्ठतोऽनुगताः, अत एव वाले सरे पुच्छके बा ध्रियमाणाः सन्तो निश्चलस्थितास्तुरगा यत्र । कपिभिर्धृतत्वेन प्रतिरुद्धगतित्वात् । एवम् - निहतो भटो रथी यस्य पतितः सारथिर्यस्य तादृश एव प्लवङ्गेन भीषितैः कोलाहलादिना त्रासितैस्तुरङ्गैह्रियमाणा रथा यत्र । पलायिताश्वपृष्ठलग्नाः शून्या एव रथा गच्छन्तीत्यर्थः । धारामार्गे संग्रामे निपातितं यद्बलं करितुरगादि तेन हेतुना प्रतिहता विच्छिन्ना अत एव विरलाः स्थाने स्थाने प्रवृत्ताः सन्तो वानरैरुनीता ऊहिता मार्गा यस्या गन्तॄणां हतत्वेन धाराकारत्वाभावाद्वर्त्मनो विरलत्वमत एवात्र संचारचिह्नमनेन गता इत्यादि कवि (पि) तर्कप्रसक्तिरित्यर्थः । एवम् - गलद्भिः प्रहरणैरस्त्रैः शून्यीकृता उभये भुजा यस्य तादृशम् । भयेनास्त्रमपि स्खलितं त्यक्तं चेत्यर्थः ॥७४-७७।।
विमला — निशाचर -सेना युद्ध के लिये साकाङ्क्ष होने पर भी पुनः भाग खड़ी हुई । लौटाने के लिये जो घुमाया तो भारी पहिये के टेढ़े चलने से लीक द्वारा रथ का मार्ग भी चक्राकार हो गया । युद्धार्थ खड़े रहने वाले समर्थ ( राक्षसवीरों ने) दौड़-दौड़कर भागने वालों को लौटाने के लिए आश्वासन देते हुए यश प्राप्त किया । मुँह मोड़ कर भागते हुए राक्षसों के पीछे पहुँच कर वानरों ने सिर पकड़ कर अपने सामने करने के लिये जो घुमाया तो घुमाने से ही उनके ललाट अधटुटे हो गये । वानरों के कलकल से त्रस्त हो भागते हुए गजों से उनके हाथीवान गिर गये । चञ्चल वानरों ने भागते हुए घोड़ों के पीछे पहुँच कर उनकी पूँछ पकड़ कर उन्हें खड़ा कर दिया । कोलाहलादि से वानरों के द्वारा त्रस्त किये गये घोड़े, रथी के मर जाने तथा सारथि के गिर जाने से खाली रथ को खींचे ले जा रहे थे । युद्ध में मर कर गिरी हुई सेना का मार्ग विच्छिन्न हो गया, थोड़ी-थोड़ी दूर पर कहीं-कहीं वह मालूम पड़ता, अतएव वानर तर्क -बल से उसका अनुमान लगाते थे ! ( भय से ) वीरों की दोनों भुजायें अस्त्रों के गिर जाने के कारण सूनी थीं ||७४-७७।।
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