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आश्वासः]
रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम्
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क्षितो अवपतिता ये कपीनां पर्वतास्तैश्चूर्णद्वारा पीतानि शोषितानि रुधिरसरितां स्रोतांसि यत्र तत् ॥३१॥
विमला-रथ के घोड़े घबड़ा कर ( मुंह के बल ) गिर गये, अतएव उनका मुख आहत हो गया, तत्पश्चात् सारथि ने अपने करतल से उनके मुंह को थामा जिससे उठ कर घोड़ों ने पुनः रथ को संचारित किया। राक्षसों के शरप्रहारों से चूर-चूर हो पृथिवी पर गिरे पर्वतों ने ( अपने चूर्ण द्वारा ) रुधिर की नदियों के स्रोतों को शुष्क कर दिया ॥३१॥ अथ बलयोरावर्तनमाह
अट्टन्ति असहणाई खण्डिज्जन्तवडिसारिअद्धन्ताई। वोच्छिज्जन्तमुहाई भिज्जन्तोसरिअपडिभडाई बलाई ॥३२॥ [ आवर्तन्तेऽसहनानि खण्डयमानप्रतिसारितार्धान्तानि ।
व्यवच्छिद्यमानमुखानि भिद्यमानापसृतप्रतिभटानि बलानि ।।]
बलान्यावर्तन्ते । परस्परमुपर्युपरि पतन्तीत्यर्थः । किंभूतानि । परेषां प्रहारमुत्कर्ष वासहमानानि । तथा--खण्डयमानाः सन्तः प्रतिसारिताः पराङ्मुखीकृता अर्धान्ताः कतिपये यत्र । अत एव व्यवच्छिद्यमानमुखानि । मानभङ्गप्रसङ्गात् पुनः स्वीयैः कैश्चिदागत्य भिद्यमानाः सन्तोऽपसृताः पश्चाद्गताः प्रतिभटाः प्रहर्तारो येषां तानि । तथा च कैश्चित्केचित्प्रथमं निहत्यापसारितास्तदृष्ट्वा तत्पक्षपूरणाय तदीयैरन्यैरागत्यामी पुननिहत्य निवर्त्यन्ते तदृष्ट्वा पुनरेतदीयैरेते पराभूयन्ते, पलायितास्तु स्वपक्ष(पूरकपक्ष)पूरणाय पुनः परावर्तन्ते इति क्रमेणोत्तरोत्तरमप्युन्मत्तकेलिरिव युद्धमभूदिति भावः ॥३२॥
विमला-सेनायें शत्रुओं के प्रहारों अथवा उत्कर्ष को न सह पाने के कारण एक-दूसरे पर फाट पड़ रही थी। प्रथम सेना के अग्रभाग के वीरों ने द्वितीय सेना के अग्रगामी वीरों को खण्डित करते हुये उन्हें पराङ्मुख कर दिया और अग्रभाग व्यवच्छिन्न हो गया; इतने में ही द्वितीय सेना के कतिपय वीरों ने उन आक्रमणकारियों को आहत कर पीछे हटा दिया, ऐसा देखकर प्रथम सेना के वीर उन्हें पराभूत करते और भागे हुये लोग पुनः लौट कर अपने पक्ष में शामिल हो जाते थे। यही क्रम निरन्तर चलता रहा ॥३२॥ राक्षसानां जिगीषामाह--
वाणरपहरुक्खडिआ अणिरूविअलक्खपेसिआसिपहरणा । मुच्छाणिमोलिअच्छा ओहोरन्ता वि अल्लिअन्ति णिसिरा ॥३३॥ [ वानरप्रहारोत्खण्डिता अनिरूपितलक्ष्यप्रेषितासिप्रहरणाः । मूर्छानिमीलिताक्षा अपह्रियमाणा अप्यालीयन्ते निशिचराः ॥]
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