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आश्वासः]
रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम्
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विमला-पर्वतों के प्रहार से गज व्याकुल हो गये, अतएव उन्होंने योद्धाओं को रुद्ध कर दिया। पताकाओं के छिन्न भिन्न हो जाने से रथ चुराये हुये-से अदृश्य थे, केवल उन पर स्थित वीरों के दुःख से ही उनकी प्रतीति होती थी।॥२६॥
गिरिपेल्लिअरहकड्ढणविहलविसारिअमुहत्थणन्ततुरङ्गम् । महिअलपलोट्टमहिहर रअपरसोमलिअभिण्णपण्डुररुहिरम् ॥२७॥ [गिरिप्रेरितरथकर्षणविह्वलविस्तारितमुखस्तनत्तुरङ्गम् ।
महीतलप्रलुठितमहीधररजतरसावमृदितभिन्नपाण्डुररुधिरम् ॥] एवम्-गिरिभिः प्रेरिता यन्त्रिता ये रथास्तेषां कर्षणेन विह्वलाः, अत एव विस्तारितमुखा व्यात्तमुखाः सन्तः स्तनन्तः खेदाविष्कारं कुर्वन्तस्तुरङ्गा यत्र । तथा महीतले प्रलुठितानां पतितानां वानरायुधीभूतानां महीधराणां रजतरसेन रूप्यक्षोदेनावमृदितानि घृष्टानि अत एव भिन्नान्येकीभूतानि सन्ति पाण्डुराणि श्वेतरक्तानि रुधिराणि यत्र तत्तथा ॥२७॥
विमला-पर्वतों से नियन्त्रित रथों को खींचने से विह्वल घोड़े मुंह बाये हये जोर-जोर से साँस ले रहे थे। पृथिवी पर गिरे ( वानरों के अस्त्ररूप ) पर्वतों के रजतचूर्ण मिलने से, बहता हुआ रुधिर पाण्डुर ( श्वेत-रक्त) हो गया था ।।२७।।
कइमुक्कचुण्णिअठ्ठि असेलमुणिज्जन्त सरससरिआमग्गम् । ओहरि अवञ्चिासिमग्गोवडन्तवाणरजोहम्
॥२८॥ [ कपिमुक्तचूर्णितस्थितशैलज्ञायमानसरससरिन्मार्गम् ।
अवपातितवञ्चितासिमार्गावपतद्वानरयोधम् ॥] एवम्-कपिमुक्तत्वात्प्रहारदाढन यत्र पतितास्तत्र चूर्णितस्थिता ये शैलास्तेषां ज्ञायमानाः सरसा: सरिन्मार्गाः स्रोतांसि यत्र । जलमिश्रणाच्चूर्णानां सरसत्वेन ज्ञायतेऽत्र स्रोतः स्थितमित्यर्थः । एवम्-रक्षोभिरवपतितानामथ च कपिभिर्नि:सृत्य वञ्चितानामसीनां मार्गे पतनपथेऽवपतन्तो वानरयोधा यत्र तथाभूतम् । तथा च यत्र ये स्थितास्ते बहिर्गताः, अन्ये पुनस्तत्र पतन्तः खण्डिता इति कपिबाहल्यमुक्तम् ॥२८॥
विमला-वानरों के द्वारा ( अस्त्ररूप में ) फेंके गये पर्वत जहाँ गिरे वहीं चूर-चूर हो स्थित थे। उन चूर्गों के ( जलमिश्रण से ) सरस होने के कारण ही ज्ञात होता था कि यहाँ नदी के स्रोत थे एवं राक्षसों के द्वारा चलायी गयी तलवार के मार्ग में जो वानर रहते थे वे तो वहाँ से हट कर उस वार को बचा जाते थे किन्तु ( वानरों की भारी भीड़ होने से ) अन्य वानर उसके मार्ग में पड़ जाते और वे खण्डित हो जाते थे ।।२८।।
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