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आश्वासः ] रामसेतुप्रदीप-विमलासमन्वितम्
विमला-राम ने परस्पर संघटित निशाचरों के सामने ( उनके देखतेदेखते ) सुवेल और मलयगिरि के बीच सेतुपथ का निर्माण कर लिया, तत्पश्चात् सुवेल के शिखरों को आन्दोलित कर दिया तो अब भी उनमें आपका विश्वास क्यों नहीं होता ? ॥१८
मलिमा मल अणिप्रम्बा थले व्व चम्मि महोअहिसलिले । वुत्थं सुवेलसिह रे अज्ज वि किं तुज्ज राहवे अग्गहणम् ।।६।। [ मर्दिता मलयनितम्बा स्थल इव चङ्क्रमितं महोदधिसलिले ।
व्युषितं सुवेलशिखरेऽद्यापि किं तव राघवेऽग्रहणम् ॥] येन कपिद्वारा मलयनितंबा मर्दिताः, स्थले यथा संचारः क्रियते तथा महोदधिसलिलेऽपि कृतः । सेतुं कृत्वेत्यर्थात् । किमपरं सुवेलशिखरे व्युषितम् । अद्यापि किं तत्र राघवे तवाग्रहणम् । तथा च त्वमतिमूढा पुनरपि मैवं शकिष्ठा इति भाव: ॥६
विमला-राम ने ( वानरों के द्वारा ) मलय गिरि के नितम्बों ( उपत्यका भाग ) को मर्दित किया, ( सेतु की रचना कर ) सागर के सलिल पर उसी प्रकार वे चले जिस प्रकार स्थल पर चला जाता है और सुवेल के शिखर पर आकर टिके । अब भी आपको उनमें विश्वास क्यों नहीं होता ? ॥ ६६ ॥ अथ सीतायास्त्रिजटाहृदि पतनमाह
तो अगहिरोवएसा गओणिअत्तन्तजीविअमहिज्जन्ती। तिअडान जणअतणमा सहिसब्भावसरिसं उरम्मिणिषण्णा ! १००। [ ततोऽगृहीतोपदेशा गतापनिवर्तमानजीवितमुह्यन्ती। त्रिजटाया जनकतनया सखीसद्भावसदृशमुरसि निषण्णा ॥] ततस्त्रजिटावचनोत्तरं जनकतनया सख्यां यः सद्भावः सौहार्दै तत्सदृशं तद्योग्यं यथा स्यादेवं त्रिजटाया उरसि निषण्णा। ईदृशविपत्ती य एवानुकूलं वक्ति तत्रवाङ्गसमर्पणं क्रियत इति भावः । किंभूता । अगृहीत इदमित्थमेवेत्यस्वीकृतास्त्रिजटाया उपदेशो यया। अत एव प्रथमं व्यतिरेकनिश्चयाद्गतेन पश्चात्रिजटावाचा संदेहादपनिवर्तमानेन परावृत्त्यागतेन जीवितेन मुह्यन्ती प्राणसंदेहे सति मोहोत्कर्षादिति भावः । केचित्तु पुनर्मोहात्पतन्ती तदुपरि निषण्णेति भावमाहुः ॥६६॥
विमला-त्रिजटा के समझाने के पश्चात् सीता का जीवन जो ( पहिले विपरीत निश्चय के कारण) चला गया था, पुनः लौट आया किन्तु उन्होंने त्रिजटा के उपदेश को ( विश्वास न होने के कारण) स्वीकार नहीं किया और वे मोह को प्राप्त होकर त्रिजटा के हृदय पर गिर पड़ीं ।। १०० ॥
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