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सेतुबन्धम्
[ तृतीय
प्रतिक्रियापराहृतं क्लेशयेदिति चिरं विचारो न घटते । तदुक्तम्---- क्षिप्रमक्रियमाणस्य कालः पिबति तद्रसम्' इति भावः ॥१३।।
विमला-अथवा क्या तुम सब नहीं जानते हो कि सुकर कार्य भी उत्तरकाल में ( विघ्नों से सन्तप्त कर ) अत्यन्त क्लेश देता है । विषवृक्ष का कोमल पुष्प ( करतल से ) मृद्यमान होने के पश्चात् मूच्छित करता है ( अतः इस कार्य के विषय में अधिक आगा-पीछा सोचना एवं विलम्ब करना उचित नहीं है) ॥१३॥
रावणकृतप्रतिक्रियाविघटमानमिदमतिदुर्घटं स्यादिति शङ्कयैव नारभ्यत इत्याशङ्कयाह
विहडन्तं पि समत्था ववसाअं पुरिसदुग्गम गेन्ति वहम् । भुवणन्तरविक्खम्भं दिअसअरो विहडिएक्कचक्कं व रहम् ॥१४॥ [विघटमानमपि समर्था व्यवसायं पुरुषदुर्गमं नयन्ति पन्थानम् । भुवनान्तरविष्कम्भं दिवसकरो विघटितैकचक्रमिव रथम् ॥]
समर्था आरभ्यमाणं व्यवसायमन्तरा विघटमानमपि पुरुषैर्दुर्गमं दुःसंचारं पन्थानं प्रापयन्ति । सुघटितं कुर्वन्तीत्यर्थः। दृष्टान्तयति-यथा भुवनान्तरं नभस्तदेव विष्कम्भं विवरं विघटितमेकं चक्रं यस्य तादशं रथं दिवसकरः प्रापयति । तथा च द्विचक्रस्यापि दुःसंचारे नभसि यथा रविरेकचक्रमपि रथं सामर्थ्येन चारयति तथा भवन्तोऽपि विघटितमपि कर्म सामर्थ्येन' घटयिष्यन्तीति भावः। 'विष्कम्भो योगभेदे च विस्तारप्रतिबन्ध योः । विष्कम्भो विवरे देश्याम्' इत्यादि ॥१४॥
विमला-समर्थ पुरुष प्रारम्भ किये गये उद्योग को, बीच में विघ्नों के पड़ने पर भी, अन्य पुरुषों से दुर्गम मार्ग पर लगा देते हैं अपने सामर्थ्य से पूर्ण कर देते हैं। सूर्य अपने सामर्थ्य से, एक चक्र से रहित रथ को नभरूप (दुर्गम ) विवर में चलाता है।
विमर्श-यहाँ समान धर्म से युक्त धर्मिद्वय में विम्बप्रति बिम्बभाव की झलक होने से 'दृष्टान्त' अलंकार है ।।१४।। समुद्रलङ्घनोत्तरमपि युद्धोपयुक्तखड्गादिविरहादन र्थकत्वं भवेदिति विलम्बिता वयमित्याशङ्कयाह--
क अकज्जे तालसमे अइरा पेच्छह भुए अणुत्तालसमे । णिहुओ राअसहाओ पडिवक्खस्स अ अवेउ राअसहाओ॥१५॥
[कृतकार्यास्तालसमानचिरात्पश्यत भुजाननुत्तालसमान् । . निभृतो राजस्वभावः प्रतिपक्षस्य चापैतु राजस्वभावः ॥]
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